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November 12, 2022
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श्रम विभाजन और जाति प्रथा,भीम राव अम्बेडकर

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भीम राव अम्बेडकर

श्रम विभाजन और जाति प्रथा (भीम राव अम्बेडकर )

संकेत – यह विडम्बना की ही बात ———–रूप लिए हुए है .

यह विडंबना की ही बात है कि इस युग में भी ‘जातिवाद’ के पोषकों की कमी नहीं है। इसके पोषक कई आधारों पर इसका समर्थन करते हैं। समर्थन का एक आधार यह कहा जाता है कि आधुनिक सभ्य समाज ‘कार्य-कुशलता’ के लिए श्रम-विभाजन को आवश्यक मानता है, और चूँकि जाति-प्रथा भी श्रम-विभाजन का ही दूसरा रूप है इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है। इस तर्क के संबंध में पहली बात तो यही आपत्तिजनक है कि जाति-प्रथा श्रम-विभाजन के साथ-साथ श्रमिक-विभाजन का भी रूप लिए हुए है।

प्रश्नरू

प्र.1 जातिवाद के पोषक किसके लिए प्रयुक्त हुआ है –

(अ ) पूंजीपतियों के लिए                       

(ब )जातिवाद के समर्थकों के लिए

(स ) उच्च वर्ण के लिए               

(द ) उपर्युक्त सभी के लिए

उत्तर-

प्र.2 जातिप्रथा को किसका दूसरा रूप बतलाया है –

(अ )श्रम विभाजन का    

(ब ) मानवता विरोधी का 

(स ) भेद भाव का         

(द ) उपर्युक्त सभी को

उत्तर-

प्र-3 जाति प्रथाश्रम विभाजन के साथ -साथ किसका रूप लिए हुए है –

(अ ) भेद-भाव का                                            

(ब )वर्ग दृभेद का

(स )श्रमिक विभाजन का            

(द ) उपर्युक्त सभी का

उत्तर-

प्र.4 उक्त गद्यांश किस पाठ से लिया गया है –

(अ ) भक्तिन                            

(ब ) बाजार दर्शन

(स ) काले मेघा पानी दे             

(द ) पहलवान की ढोलक

उत्तर-

प्र.5 उक्त गद्यांश जिस पाठ से लिया गया है ,इसके लेखक है –

(अ ) भीम राव अम्बेडकर         

(ब )जैनेंद्र

(स ) धर्मवीर भारती                   

(द ) फणीश्वरनाथ रेणु

उत्तर-

संकेत – श्रम विभाजन निश्चय ही ————- समाज में नहीं पाया जाता .

श्रम-विभाजन निश्चय ही सभ्य समाज की आवश्यकता है, परंतु किसी भी सभ्य समाज में श्रम-विभाजन की व्यवस्था श्रमिकों का विभिन्न वर्गों में अस्वाभाविक विभाजन नहीं करती। भारत की जाति-प्रथा की एक और विशेषता यह है कि यह श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन ही नहीं करती बल्कि विभाजित विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच भी करार देती है, जो कि विश्व के किसी भी समाज में नहीं पाया जाता।

रूप्र.1 सभ्य समाज की आवश्यकता किसे बतलाया है –

(अ )समानता को                      

(ब ) श्रम विभाजन को

(स )भाई दृचारे को        

(द ) उपर्युक्त सभी को

उत्तर-

प्र.2 श्रम विभाजन में दोष कब आ जाता है –

(अ )जब भेद दृभाव किया जाता है                                                          

(ब )उसे अन्य कार्य नहीं करने दिया जाता है

(स ) जब श्रम को जाति मान लिया जाता है          

(द )उपर्युक्त सभी कारणों से

उत्तर-

प्र.3अम्बेडकर जी ने विश्व समाज की किस विशेषता की ध्यान दिलाया है जो भारत में नहीं –

(अ )जाति के आधार पर भेद दृभाव नहीं किया जाता                                                                                           

(ब ) आर्थिक आधार पर भेद-भाव नहीं किया जाता

(स )श्रम के आधार पर ऊँचा -नीचे नहीं समझा जाता                   

(द )उपर्युक्त सभी

उत्तर-

प्र.4 उक्त गद्यांश किस पाठ से लिया गया है –

(अ )श्रम विभाजन और  जातिप्रथा                      

(ब )बाजार दर्शन

(स )काले मेघा पानी दे                                      

(द )पहलवान की ढोलक

उत्तर-

प्र.5 उक्त गद्यांश जिस पाठ से लिया गया है ,इसके लेखक है –

(अ )भीम राव अम्बेडकर                       

(ब )जैनेंद्र

(स )धर्मवीर भारती                                

(द )फणीश्वरनाथ रेणु

उत्तर-

संकेत – जातिप्रथा पेशे का दोषपूर्ण ————प्रत्यक्ष कारण बना हुआ है .

जाति-प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्वनिर्धारण ही नहीं करती बल्कि मनुष्य को जीवन-भर के लिए एक पेशे में बाँध भी देती है। भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखों मर जाए। आधुनिक युग में यह स्थिति प्रायरू आती है, क्योंकि उद्योग-धंधों की प्रक्रिया व तकनीक में निरंतर विकास और कभी-कभी अकस्मात परिवर्तन हो जाता है, जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतंत्रता न हो तो इसके लिए भूखों मरने के अलावा क्या चारा रह जाता है? हिंदू धर्म की जाति-प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है, जो उसका पैतृक पेशा न हो, भले ही वह उसमें पारंगत हो। इस प्रकार पेशा-परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति-प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।

प्र.1 जातिप्रथा किसका पूर्वनिर्धारण करती है –

(अ )पेशे का                             

(ब )जाति का

(स ) पेशे और जाति दोनों का    

 (द )उपर्युक्त में से किसी का नहीं

उत्तर-

प्र.2 तकनीक विकास से किसी भी व्यवसाय का रूप बदल जाता है ,तब किसकी आवश्यकता पड़ेगी –

(अ )सामाजिक परिवर्तन की                              

(ब )पेशा बदलने की

(स )शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन की                                 

(द )उपर्युक्त सभी की

प्र.3 पेशा बदलने की स्वतंत्रता न होने पर क्या होगा –

(अ )उत्पादन कम होगा                                                                         

(ब )बेरोगारी बढ़ेगी

(स )उस जाति के लोगों को भूखों मरना पड़ेगा                

(द )उपर्युक्त सभी

उत्तर-

प्र- 4 हिन्दू धर्म किस बात की अनुमति नहीं देता –

(अ ) धर्म परिवर्तन की                           

(ब ) पेशा बदलने की

(स )जाति बदलने की                            

(द ) उपर्युक्त सभी

उत्तर-

 प्र-5 अम्बेडकरजी के अनुसार भारत में बेरोजगारी का क्या कारण है –

(अ )बढ़ती आबादी                                           

(ब ) पेशा परिवर्तन की अनुमति न मिलाना

(स ) शिक्षितों की संख्या बढ़ाना                                      

(द )उपर्युक्त सभी

उत्तर-

संकेत -श्रम विभाजन की दृष्टि से ———– प्रथा में क्या दोष है दृ

प्र-1  श्रम विभाजन की दृष्टि से जातिप्रथा का क्या दोष है –

(अ ) व्यक्ति की इच्छा का कोई स्थान नहीं होता  

(ब ) व्यक्ति की रूचि का कोई स्थान नहीं होता

(स ) उसे जन्म आधारित पेशा अपनाना पड़ता है

(द ) उपर्युक्त सभी

उत्तर-

प्र-2  पूर्व लेख से क्या आशय है –

(अ)                             

(ब ) पिछले जन्म के कार्यों का प्रतिफल

(स )                             

(द )

उत्तर-

प्र-3 श्रम विभाजन के दोष का क्या परिणाम होगा

(अ)                                         

(ब )

(स ) कार्य अरुचि से होगा          

(द )

उत्तर-

प्र-4 कार्यकुशलता बढ़ने के लिए क्या आवश्यक है –

(अ )                                        

(ब )

(स )                                         

(द ) रूचि के अनुसार कार्य करने की स्वतंत्रता देनी होगी

उत्तर-

प्र-5-जातिप्रथा का दोष क्या है –

अ ) मनुष्य की स्वाभाविक प्रेरणा समाप्त हो जाती है       

(ब ) रूचि से कार्य नहीं होगा

(स ) मनुष्य निष्क्रिय हो जाता है                         

(द ) उपर्युक्त सभी

उत्तर-

संकेत – फिर मेरी दृष्टि में ————–नाम लोकतंत्र है .

फिर मेरी दृष्टि में आदर्श समाज क्या है? ठीक है, यदि ऐसा पूछेगे, तो मेरा उत्तर होगा कि मेरा आदर्श समाज स्वतंत्रता, समता, भ्रातृता पर आधारित होगा? क्या यह ठीक नहीं है, भ्रातृता अर्थात भाईचारे में किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? किसी भी आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए जिससे कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे तक संचारित हो सके। ऐसे समाज के बहुविधि हितों में सबका भाग होना चाहिए तथा सबको उनकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए। सामाजिक जीवन में अबाध संपर्क के अनेक साधन व अवसर उपलब्ध रहने चाहिए। तात्पर्य यह कि दूध-पानी के मिश्रण की तरह भाईचारे का यही वास्तविक रूप है, और इसी का दूसरा नाम लोकतंत्र है।

प्र-1 अम्बेडकरजी के अनुसार आदर्श समाज कैसा हो –

(अ ) जिसमे भाईचारा हो                                   

(ब ) जिसमे स्वतंत्रता हो

(स ) जिसमे समानता हो                                    

(द ) उपर्युक्त सभी हो

उत्तर-

प्र-2 जिसमे सभी सामूहिक रूप से एक दूसरे के हितो को समझे और एक दूसरे की रक्षा करें,यह लक्षण है –

(अ ) भाईचारा का                     

(ब ) स्वतंत्रता का 

(स ) समानता का                     

(द ) उपर्युक्त सभी का

उत्तर-

प्र-3 अबाध संपर्क का आशय है –

(अ ) जाति का कोई बंधन न होना                                              

(ब ) अमीरी दृगरीबी की  ओर ध्यान न दिया जाना                       

(स ) बिना किसी बाधा के          

(द )उपर्युक्त सभी

उत्तर-

प्र-4 लोकतंत्र का वास्तविक स्वरुप है –

(अ ) भाईचारा              

(ब ) लोकतंत्र

(स )स्वतंत्रता                

(द )समानता

उत्तर-

प्र.5 उक्त गद्यांश जिस पाठ से लिया गया है ,इसके लेखक है –

(अ ) भीम राव अम्बेडकर         

(ब ) जैनेंद्र

(स ) धर्मवीर भारती                   

(द ) फणीश्वरनाथ रेणु

उत्तर-

संकेत – जातिप्रथा के पोषक ,जीवन ————पेशे अपनाने पड़ते है .

जाति-प्रथा के पोषक जीवन, शारीरिक-सुरक्षा तथा संपत्ति के अधिकार की स्वतंत्रता को तो स्वीकार कर लेंगे, परंतु मनुष्य के सक्षम एवं प्रभावशाली प्रयोग की स्वतंत्रता देने के लिए जल्दी तैयार नहीं होंगे, क्योंकि इस प्रकार की स्वतंत्रता का अर्थ होगा अपना व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता किसी को नहीं है, तो उसका अर्थ उसे ‘दासता’ में जकड़कर रखना होगा, क्योंकि ‘दासता’ केवल कानूनी पराधीनता को नहीं कहा जा सकता। ‘दासता’ में वह स्थिति भी सम्मिलित है जिससे कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों के द्वारा निर्धारित व्यवहार एवं कर्तव्यों का पालन करने के लिए विवश होना पड़ता है। यह स्थिति कानूनी पराधीनता न होने पर भी पाई जा सकती है। उदाहरणार्थ, जाति-प्रथा की तरह ऐसे वर्ग होना संभव है, जहाँ कुछ लोगों की अपनी इच्छा के विरुद्ध पेशे अपनाने पड़ते हैं।

प्र.1  अम्बेडकरजी के अनुसार जातिप्रथा के समर्थक कौन -कौनसाअधिकार दे सकते है –

(अ ) पेशेगत आजीविका का                  

(ब ) सुरक्षा का

(स ) सम्पति का                                    

(द ) उपर्युक्त सभी का

उत्तर-

प्र-2 अम्बेडकरजी के अनुसार जातिप्रथा के समर्थक कौनसा अधिकार नहीं दे सकते है –

(अ ) जाति परिवर्तन का                                                

(ब ) रूचि के अनुसार स्थान बदलने का

(स ) रूचि के अनुसार कार्य चुनने का    

(द )उपर्युक्त सभी

उत्तर-

प्र-3 अम्बेडकरजी के अनुसारकुछ लोगों द्वारा जाती विशेष के लोगों को पैतृक व्यवसाय के लिए विवश करना ,किसका लक्षण है –

(अ ) दमन का                          

(ब )अन्याय का

(स ) दासता का            

(द )शोषण का

उत्तर-

  प्र.4 उक्त गद्यांश किस पाठ से लिया गया है –

(अ ) भक्तिन                            

(ब ) बाजार दर्शन

(स ) काले मेघा पानी दे

(द ) पहलवान की ढोलक

उत्तर-

प्र.5 उक्त गद्यांश जिस पाठ से लिया गया है ,इसके लेखक है –

(अ ) भीम राव अम्बेडकर         

(ब ) जैनेंद्र

(स ) धर्मवीर भारती                   

(द ) फणीश्वरनाथ रेणु

उत्तर-

संकेत – व्यक्ति विशेष के दृष्टिकोण से ————- उपलब्ध कराये जाए.

व्यक्ति-विशेष के दृष्टिकोण से, असमान प्रयत्न के कारण, असमान व्यवहार को अनुचित नहीं कहा जा सकता। साथ ही प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता का विकास करने का पूरा प्रोत्साहन देना सर्वथा उचित है। परंतु यदि मनुष्य प्रथम दो बातों में असमान है तो क्या इस आधार पर उनके साथ भिन्न व्यवहार उचित हैं? उत्तम व्यवहार के हक की प्रतियोगिता में वे लोग निश्चय ही बाजी मार ले जाएँगे, जिन्हें उत्तम कुल, शिक्षा, पारिवारिक ख्याति, पैतृक संपदा तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठा का लाभ प्राप्त है। इस प्रकार पूर्ण सुविधा संपन्नों को ही ‘उत्तम व्यवहार’ का हकदार माना जाना वास्तव में निष्पक्ष निर्णय नहीं कहा जा सकता। क्योंकि यह सुविधा-संपन्नों के पक्ष में निर्णय देना होगा। अतरू न्याय का तकाजा यह है कि जहाँ हम तीसरे (प्रयासों की असमानता, जो मनुष्यों के अपने वश की बात है) आधार पर मनुष्यों के साथ असमान व्यवहार को उचित ठहराते हैं, वहाँ प्रथम दो आधारों (जो मनुष्य के अपने वश की बातें नहीं हैं) पर उनके साथ असमान व्यवहार नितांत अनुचित है। और हमें ऐसे व्यक्तियों के साथ यथासंभव समान व्यवहार करना चाहिए। दूसरे शब्दों में, समाज को यदि अपने सदस्यों से अधिकतम उपयोगिता प्राप्त करनी है, तो यह तो संभव है, जब समाज के सदस्यों को आरंभ से ही समान अवसर एवं समान व्यवहार उपलब्ध कराए जाएँ।

प्र.1 उत्तम व्यवहार प्रतियोगिता में उच्च वर्ग बाजी मार जाता है ,इसे अम्बेडकरजी मानते है –

(अ ) अनुचित असमान व्यवहार

(ब ) अनीति पूर्ण व्यवस्था

(स ) पक्षपातपूर्ण नीति                                       

(द )उपर्युक्त सभी

उत्तर-

प्र.2 अम्बेडकरजी के अनुसार हर व्यक्ति को किस बात का प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए –

(अ ) आर्थिक उन्नति करने का                                                   

(ब ) किसी भी प्रकार के परिवर्तन का

(स ) क्षमता का विकास करने का

(द ) उपर्युक्त सभी

उत्तर-

प्र.3अम्बेडकरजी के अनुसार न्याय का तकाजा क्या है –

(अ ) आसमान व्यवहार न करके सामान व्यवहार करना चाहिए   

(ब )भाई-चारे का व्यवहार करना चाहिए

(स ) स्वतंत्रता प्रदान की जानी चाहिए                                                                                         

(द )उपर्युक्त सभी

उत्तर-

प्र.4 अम्बेडकरजी के अनुसार समाज अपने सदस्यों से अधिकतम उपयोगिता कब प्राप्त कर सकता है –

(अ )स्वतंत्रता प्रदान करके                                             

(ब ) समानता प्रदान करके

(स ) सामान अवसर उपलब्ध कराके                  

(द )उपर्युक्त सभी

उत्तर-

प्र.5 उक्त गद्यांश किस पाठ से लिया गया है –

(अ ) श्रम विभाजन और जातिप्रथा                      

(ब ) बाजार दर्शन

(स ) काले मेघा पानी दे                         

(द ) पहलवान की ढोलक

उत्तर-

संकेत -एक राजनीतिज्ञ पुरुष का ———-सामान व्यवहार किया जाए .

प्र.1एक राजनीतिज्ञ के लिए व्यवहार्य सिद्धांत क्या है –

(अ ) सभी मनुष्यों के साथ सामान व्यवहार किया जाए     

(ब ) सभी को भाई समान माना चाहिए

(स )सभी को स्वतंत्रता प्रदान करनी चाहिए                                                                                 

(द )उपर्युक्त सभी

उत्तर-

प्र.2 एक राजनीतिज्ञ की विवशता क्या है –

(अ ) सभी के अलग-अलग व्यवहार नहीं कर सकता       

(ब ) सभी की समस्या का निराकरण नहीं कर सकता

(स ) निर्धनता नहीं मिटा सकता                                                  

(द ) बेरोजगारी नहीं मिटा सकता           

प्र.3 भिन्न व्यवहार मानवता की दृष्टि से उपयुक्त नहीं होता क्योकि –

(अ ) मानव के बीच भेद-भाव बना रहता है                                                                                    

(ब )परस्पर सहयोग नहीं हो पता

(स ) समाज को दो वर्गों और श्रेणियों में नहीं बांटा जा सकता       

(द )उपर्युक्त सभी

उत्तर-

प्र.4 उक्त गद्यांश किस पाठ से लिया गया है –

(अ ) श्रम विभाजन और जातिप्रथा                      

(ब ) बाजार दर्शन

(स ) काले मेघा पानी दे                         

(द ) पहलवान की ढोलक

उत्तर-

प्र.5 उक्त गद्यांश जिस पाठ से लिया गया है ,इसके लेखक है –

(अ ) भीम राव अम्बेडकर                     

(ब )जैनेंद्र

(स ) धर्मवीर भारती                               

(द )फणीश्वरनाथ रेणु

उत्तर-(अ ) भीम राव अम्बेडकर                     

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