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रुबाइयाँ,फ़िराक गोरखपुरी
रुबाइयाँ
भावार्थ एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1.
आंगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती हैं उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूँज उठती हैं खिलखिलाते बच्चे की हँसी।
भावार्थ- एक माँ चाँद के टुकड़े जैसे बेटे को अपने घर के आँगन में लिए खड़ी है। माँ कभी बच्चे को अपने हाथों में झुलाने लगती है तथा बीच-बीच में बच्चे को हवा में उछाल देती है। ऐसा करने से बच्चा खिलखिलाकर हँस पड़ता है और वातावरण बच्चे की हँसी से गूँजने लगता है।
2.
नहला के छलके-छलके निर्मल जल से
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
किस प्यार से देखता हैं बच्चा मुँह को
जब घुटनियों में ले के हैं पिन्हाती कपड़े।
भावार्थ- माँ अपने बच्चे को स्वच्छ जल से नहला रही है ।तत्पश्चात उसके उलझे बालों को कंघे से संवारती है ,फिर घुटनों पर बच्चे कलो बिठाकर कपडें पहनाती है ,जब माँ बच्चे को कपडें पहना रही होती है ,बच्चा एक टक माँ की ओर देख रहा होता है .
3.
दीवाली की शाम घर पुते और सजे
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पैं इक नम दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती हैं दिए।
भावार्थ- दीवाली की शाम है। घर पुते हुए और सजे हुए है। माँ चीनी के खिलौनें लेकर आती है .सुंदर माँ घरौंदा बनाकर उसमे दीपक जलाती है ,दीपक की लौ से सुंदर माँ का चेहरा और भी दमकने लगता है .
4.
आँगन में ठुनक रहा हैं जिदयाया है
बालक तो हई चाँद में ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही हैं माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है
भावार्थ-एक बच्चा जो आँगन में ठुनक रहा है। अनायास उसकी नज़र आकाश में चमक रहे चाँद पर पड़ जाती है . उसका मन उस चाँद पर ललचा गया है । जिद करना बच्चे का स्वाभाविक गुण होता है .वह जिदकर चाँद माँगने लगता है । माँ उसे दर्पण में प्रतिबिम्ब दिखाते हुए कहती है कि देख बेटा, दर्पण में चाँद उतर आया है। इस तरह वह बच्चे को बहलाती है ।
5.
रक्षाबंदन की सुबह रस की पुतली
छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधती चमकती राखी
भावार्थ- रक्षाबंधन की सुबह है। सावन का महीना है। आकाश में काले-काले बादलों की हल्की घटाएँ छाई हुई हैं। रह-रहकर बादलों में बिजली चमक रही है। इसी तरह एक छोटी बहिन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधने के लिए उत्साहित जान पड़ रही है .राखी के लच्छे बिजली की तरह चमक रहे हैं। बहिन जब अपने भाई की कलाई पर चमकीली राखी बाँधती है तो उसके चहरे पर प्रसन्नता की वैसी ही चमक होती है ,जैसे बादलों में बिजली चमकने पर होती है ।
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