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November 12, 2022
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छोटा मेरा खेत,बगुलों के पंख,उमा शंकर जोशी

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छोटा मेरा खेत,बगुलों के पंख,उमा शंकर जोशी,भावार्थ

(क) छोटा मेरा खेत

1.

छोटा मोरा खेत चौकोना

कागज़ का एक पन्ना,

कोई अंधड़ कहीं से आया

क्षण का बीज बहाँ बोया गया ।

कल्पना के रसायनों को पी

बीज गल गया नि:शेष;

शब्द के अंकुर फूटे,

पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।  

भावार्थ-कवि के लिए  कागज का पन्ना एक चौकोर खेत की तरह  है। जिस तरह अंधड़ के साथ कोई बीज मिटटी में आकर मिल जाता है ,उसी प्रकार तत्कालिक सामाजिक स्थिति का कोई भाव या विचार कवि के मन-मस्तिष्क में आता है .जिस तरह बीज मिटटी के साथ रासायनिक क्रिया कर अंकुरित होता है ,उसी प्रकार कवि भाव अथवा विचार के कल्पना का समावेश करता है और कागज रुपी खेत में शब्द रुपी अंकुर प्रस्फुटित होने लगते है .अंकुरविकसित होकर पौधे में परिवर्तित होने लगता है और फूल –पत्तों से सुशोभित होने लगता है .इसी प्रकार अलंकार प्रयोग से कवि की कविता भी सौन्दर्य धारण करने लगती है .

2.

झूमने लगे फल,

रस अलौकिक,

अमृत धाराएँ फुटतीं

रोपाई क्षण की,

कटाई अनंतता की

लुटते रहने से ज़रा भी नहीं कम होती।

रस का अक्षय पात्र सदा का

छोटा मेरा खेत चौकोना।

भावार्थ – पौधा विकसित होकर वृक्ष का रूप धारण करता है ,उसमे रसीलें फल लगते है .उसी प्रकार जब कवि की रचना पूर्ण काव्य रूप में प्रकाशित होती ,पाठक जब उस काव्य रचना का श्रवण अथवा वाचन करता है ,पाठक अथवा श्रोता को आत्मिक आनद की अनुभूति होती है .

क्षण भर का भावनात्मक आवेग  काव्य रूप धारण कर युगों युगों तक ,एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक को काव्य का रसास्वादन कराती रहती है .  कवि की काव्य रचना का आनंद कभी समाप्त नहीं होता ,अनवरत चलता रहता है .ठीक वैसे ही जैसे अक्षय पात्र से कभी अन्न  समाप्त नहीं होता .अर्थात कवि की काव्य रचना अक्षयपात्र के समान है .

(ख) बगुलों के पंख

नभ में पाँती-बाँधे बगुलों के पंख,

चुराए लिए जातीं वे मेरा आँखे।

कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,

तैरती साँझ की सतेज श्वेत  काया

हौले-हौले  जाती मुझे बाँध निज माया से।

उसे कोई तनिक रोक रक्खो।

वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखे

नभ में पाँती-बँधी बगुलों के पाँखें।  

भावार्थ –  आकाश में गहरे  काले-काले बादल छाये हुए है .इन बादलों के समक्ष बगुलों का समूह  पंक्तिबद्ध होकर  विचरण कर रहा है .आकाश में पंक्तिबद्ध बगुलों को उड़ते हुए  देखकर कवि मंत्र मुग्ध हो जाता है .। यह दृश्य कवि की आँखें  चुरा ले जाता है। नभ पर छाई हुई काले-काले बादलों की छाया ऐसी जान पड़ती है मानो संध्या रुपी सुंदरी स्वयं श्वेत  पंख लगाकर आकाश  में तैर रही हो .इस  दृश्य के  आकर्षक ने जैसे कवि को ने जादू से  धीरे-धीरे बाँध बाँध दिया है। कवि इस दृश्य के आकर्षण में डूबता चला गया .अनायास कवि को आशंका होती है कि यह दृश्य कहीं मेरी आँखोंसे ओझल न हो जाए , कवि आहवान करता है कि इस आकर्षक दृश्य के प्रभाव को कोई  स्थायी रूप दे थाम दे ,ताकि में इस दृश्य को निरंतर निरंतर …अनवरत निहारता रहूँ क्योकि इस दृश्य ने कवि को सम्मोहन में बांध दिया है

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