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2- बाजार दर्शन (जैनेंद्र )
संकेत -1 उनका आशय था ———-भरा फूला रहता है
उनका आशय था कि यह पत्नी की महिमा है। उस महिमा का मैं कायल हूँ। आदिकाल से इस विषय में पति से पत्नी की ही प्रमुखता प्रमाणित है। और यह व्यक्तित्व का प्रश्न नहीं, स्त्रीत्व का प्रश्न है। स्त्री माया न जोड़े, तो क्या मैं जोड़ें? फिर भी सच सच है और वह यह कि इस बात में पत्नी की ओट ली जाती है। मूल में एक और तत्व की महिमा सविशेष है। वह तत्व है मनीबैग, अर्थात पैसे की गरमी या एनर्जी। पैसा पावर है। पर उसके सबूत में आस-पास माल-टाल न जमा हो तो क्या वह खाक पावर है! पैसे को देखने के लिए बैंक-हिसाब देखिए, पर माल-असबाब मकान-कोठी तो अनदेखे भी देखते हैं। पैसे की उस ‘पचेंजिग पावर’ के प्रयोग में ही पावर का रस है। लेकिन नहीं। लोग संयमी भी होते हैं। वे फिजूल सामान को फिजूल समझते हैं। वे पैसा बहाते नहीं हैं और बुद्धमान होते हैं। बुद्ध और संयमपूर्वक वे पैसे को जोड़ते जाते हैं, जोड़ते जाते हैं। वे पैसे की पावर को इतना निश्चय समझते हैं कि उसके प्रयोग की परीक्षा उन्हें दरकार नहीं है। बस खुद पैसे के जुड़ा होने पर उनका मन गर्व से भरा फूला रहता है।
प्र.1 अनावश्यक खरीद में पुरुष किसकी आड़ लेते है –
(अ ) ईश्वर की
(ब ) पत्नी की
(स )वेतन की
(द ) उपर्युक्त सभी की
उत्तर- (ब ) पत्नी की
प्र.2 अनावश्यक खरीद का लेखक ने क्या कारण बतलाया है –
(अ ) मन का असंतोषी होना
(ब ) दूसरो के सामने ऊँचा दिखने के लिए
(स ) मनी पॉवर
(द ) उपर्युत सभी
उत्तर-(स ) मनी पॉवर
प्र. 4 लेखक ने संयमी किसे कहा है –
(अ ) कंजूस को
(ब ) मन पर नियंत्रण वाले को
(स ) मितव्ययी को
(द ) उपर्युक्त सभी को
उत्तर-(अ ) कंजूस को
प्र. 5 मनुष्य अपने को दूसरों से शक्तिशाली दिखने के लिए किसका इस्तेमाल करता है –
(अ ) अपने कुल का
(ब ) अपनी पैतृक सम्पति का
(स ) मनी पावर का
(द ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(स ) मनी पावर का
संकेत -2 मित्र बोले ,कुछ न पूछो ——— बना डाल सकता है
मैंने मन में कहा, ठीक। बाजार आमंत्रित करता है कि आओ मुझे लूटो और लूटो । सब भूल जाओ, मुझे देखो। मेरा रूप और किसके लिए है? मैं तुम्हारे लिए हूँ। नहीं कुछ चाहते हो, तो भी देखने में क्या हरज है। अजी आओ भी। इस आमंत्रण में यह खूबी है कि आग्रह नहीं है आग्रह तिरस्कार जगाता है। लेकिन ऊँचे बाजार का आमंत्रण मूक होता है और उससे चाह जगती है। चाह मतलब अभाव। चौक बाजार में खड़े होकर आदमी को लगने लगता है कि उसके अपने पास काफी नहीं है और चाहिए, और चाहिए। मेरे यहाँ कितना परिमित है और यहाँ कितना अतुलित है, ओह! कोई अपने को न जाने तो बाजार का यह चौक उसे कामना से विकल बना छोड़े। विकल क्यों, पागल। असंतोष, तृष्णा और ईष्या से घायल करके मनुष्य को सदा के लिए यह बेकार बना डाल सकता है।
प्र.1 लेखक ने बाजार को कहा है –
(अ ) मायाजाल
(ब ) शैतान का जाल
(स ) लूटमार का स्थान
(द ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(ब ) शैतान का जाल
प्र.2 लेखक ने बेहया किसे कहा है –
(अ ) अनावश्यक खरीदारी करनेवाले को
(ब ) संयमी प्रवृति के लोगों को
(स ) सामान न खरीदने वाले ग्राहक को
(द ) उपर्युक्त सभी को
उत्तर-(स ) सामान न खरीदने वाले ग्राहक को
प्र.3 बाजार का आमंत्रण कैसा होता है –
(अ )मूक
(ब ) वाचाल
(स ) सांकेतिक
(द )उपर्युक्त सभी
उत्तर-(अ )मूक
प्र. 4 बाजार ग्राहक को किससे भर देता है –
(अ ) असंतोष
(ब ) तृष्णा
(स ) ईर्ष्या
(द ) उपर्युक्त सभी से
उत्तर-(द )उपर्युक्त सभी से
प्र. 5 कोई अपने को न जाने तो बाजार उसे क्या बना सकता है –
(अ ) क्रोधित
(ब ) अनियंत्रित
(स )पागल
(द )उपर्युक्त सभी
उत्तर- (स )पागल
संकेत -3 बाजार में एक जादू ———- बढ़ाने वाला मालूम होता है।
बाजार में एक जादू है। वह जादू आँख की राह काम करता है। वह रूप का जादू है जैसे चुंबक का जादू लोहे पर ही चलता है, वैसे ही इस जादू की भी मर्यादा है। जेब भरी हो, और मन खाली हो, ऐसी हालत में जादू का असर खूब होता है। जेब खाली पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा। मन खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीजों का निमन्त्रण उस तक पहुँच जाएगा। कहीं उस वक्त जेब भरी हो तब तो फिर वह मन किसकी मानने वाला है। मालूम होता है यह भी लें. वह भी लें। सभी सामान जरूरी और आराम को बढ़ाने वाला मालूम होता है।
प्र. 1 बाजार की सारी चीजों को खरीदने की इच्छा उत्पन्न करने को लेखक ने कहा है –
(अ ) लालसा
(ब ) कमज़ोर इच्छा शक्ति
(स )बाजार का जादू
(द )उपर्युक्त सभी
उत्तर-(स )बाजार का जादू
प्र. 2 बाजार का असर किस पर होता है –
(अ )खाली मन वालों पर
(ब )भरी जेब वालों पर
(स )खाली मन और भरी जेब वालों पर
(द )उपर्युक्त सभी
उत्तर-(स )खाली मन और भरी जेब वालों पर
प्र. 3 खाली खाली मन का अर्थ होगा –
(अ ) मन में कोई इच्छा न होना
(ब ) मन का भटकाव
(स ) मन में कोई विचार न होना
(द )उपर्युक्त सभी
उत्तर-(ब ) मन का भटकाव
प्र. 4 लेखक के अनुसार फैंसी चीजें आराम बढ़ाने की बजाय क्या करती है –
(अ ) आलसी बनती है
(ब )अहंकार पैदा कराती है
(स )आराम में खलल डालती है
(द )उपर्युक्त सभी
उत्तर-(द )उपर्युक्त सभी
प्र. 5 अभिमान की गिल्टी की खुराक मिलने से क्या आशय है –
(अ ) दिखावे की प्रवृति बढ़ना
(ब ) अहंकार उत्पन्न होना
(स ) दूसरे को हीन समझाना
(द )उपर्युक्त सभी
उत्तर-(ब ) अहंकार उत्पन्न होना
संकेत -4 पर उस जादू की ———– के समय काम आना
पर उस जादू की जकड़ से बचने का एक सीधा-सा उपाय है। वह यह कि बाजार जाओ तो मन खाली न हो। मन खाली हो, तब बाजार न जाओ। कहते हैं लू में जाना हो तो पानी पीकर जाना चाहिए। पानी भीतर हो, लूका लूपन व्यर्थ हो जाता है। मन लक्ष्य में भरा हो तो बाजार भी फैला-का-फैला ही रह जाएगा। तब वह घाव बिलकुल नहीं दे सकेगा, बल्कि कुछ आनंद ही देगा। तब बाजार तुमसे कृतार्थ होगा, क्योंकि तुम कुछ-न-कुछ सच्चा लाभ उसे दोगे। बाजार की असली कृतार्थता है आवश्यकता के समय काम आना।
प्र. 1 बाजार से बचने का लेखक ने क्या उपाय सुझाया है –
(अ )मन भर कर बाजार जाने का
(ब ) खाली मन बाजार जाने का
(स )खली हाथ जाने का
(द )उपर्युक्त सभी
उत्तर-(अ )मन भर कर बाजार जाने का
प्र.2 लेखक ने ग्राहकों को क्या सलाह दी है –
(अ ) संयमी बने रहने का
(ब ) जब मन खाली हो बाजार न जाएं
(स ) ज्यादा पैसे लेकर बाज़ार न जाने का
(द ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(ब ) जब मन खाली हो बाजार न जाएं
प्र.3 लेखक के अनुसार मन लक्ष्य से भरा हो तो क्या होगा –
(अ ) मन नहीं भटकेगा
(ब ) मन काबू में रहेगा
(स )बाजार फैला का फैला रह जाएगा
(द ) उपर्युक्त सभी
उत्तर- (स )बाजार फैला का फैला रह जाएगा
प्र.4 लेखक के अनुसार बाजार की सार्थकता किसमे है –
(अ ) सस्ती वस्तु उपलब्ध करना
(ब )आवश्यकता के समय काम आना
(स ) शुद्ध वस्तु उपलब्ध करना
(द ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(ब )आवश्यकता के समय काम आना
प्र.5 मन में लक्ष्य लेकर बाजार जाने से क्या आशय है-
(अ )किसी उद्देश्य से बाजार जाना
(ब ) एक ही वस्तु खरीदने जाना
(स ) जिस की सबसे ज्यादा ज़रुरत है ,उसी को खरीदने जाना
(द ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(अ )किसी उद्देश्य से बाजार जाना
संकेत -5 यहाँ एक अंतर …………… मोक्ष की राह वह नहीं
यहाँ एक अंतर चीन्ह लेना बहुत जरूरी है। मन खाली नहीं रहना चाहिए, इसका मतलब यह नहीं है कि वह मन बंद रहना चाहिए। जो बंद हो जाएगा, वह शून्य हो जाएगा। शून्य होने का अधिकार बस परमात्मा का है जो सनातन भाव से संपूर्ण है। शेष सब अपूर्ण है। इससे मन बंद नहीं रह सकता। सब इच्छाओं का निरोध कर लोगे, यह झूठ है और अगर ‘इच्छानिरोधस्तपरू ‘ का ऐसा ही नकारात्मक अर्थ हो तो वह तप झूठ है। वैसे तप की राह रेगिस्तान को जाती होगी, मोक्ष की राह वह नहीं है। ठाठ देकर मन को बंद कर रखना जड़ता है।
प्र.1 मन बंद होने क्या आशय है –
(अ )इच्छाओं का का मर जाना
(ब ) बलपूर्वक कामनाओं का दमन करना
(स )परिस्थिति से समझौता करना
(द ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(अ )इच्छाओं का का मर जाना
प्र.2 परमात्मा और मनुष्य की प्रवृति में क्या अंतर है –
(अ )परमात्मा देता है ,मनुष्य लेता है
(ब )परमात्मा पूर्ण है ,मनुष्य अपूर्ण है
(स )परमात्मा सर्वशक्तिशाली है ,मनुष्य कमज़ोर है
(द ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(ब )परमात्मा पूर्ण है ,मनुष्य अपूर्ण है
प्र.3 लेखक ने किस प्रवृति को नकारात्मक माना है
(अ ) विवशतावश इच्छाओं का दमन करने को
(ब ) दुविधा की स्थिति को
(स )बल पूर्वक इच्छाओं का दमन करने को
(द ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(स )बल पूर्वक इच्छाओं का दमन करने को
प्र.4 उक्त गद्यांश किस पाठ से लिया गया है –
(अ ) बाजार दर्शन
(ब ) भक्तिन
(स ) काले मेघा पानी दे
(द ) पहलवान की ढोलक
उत्तर-(अ ) बाजार दर्शन
प्र- 5 उक्त गद्यांश किस किस साहित्यकार की रचना से लिया गया है –
(अ ) महादेवी वर्मा
(ब ) जैनेंद्र
(स ) फणीश्वर नाथ रेणु
(द ) धर्मवीर भारती
उत्तर-(ब ) जैनेंद्र
संकेत – तो वह क्या बल है जो इस —————–जड़ की विजय है
तो वह क्या बल है जो इस तीखे व्यंग्य के आगे ही अजेय नहीं रहता, बल्कि मानो उस व्यंग्य की क्रूरता को ही पिघला देता है? उस बल को नाम जो दोय पर वह निश्चय उस तल की वस्तु नहीं है जहाँ पर संसारी वैभव फलता-फूलता है। वह कुछ अपर जाति का तत्व है। लोग स्पिरिचुअल कहते हैंय आत्मिक, धार्मिक, नैतिक कहते हैं। मुझे योग्यता नहीं कि मैं उन शब्दों में अंतर देखें और प्रतिपादन करूं। मुझे शब्द से सरोकार नहीं। मैं विद्वान नहीं कि शब्दों पर अटकैं। लेकिन इतना तो है कि जहाँ तृष्णा है, बटोर रखने की स्पृहा है, वहाँ उस बल का बीज नहीं है। बल्कि यदि उसी बल को सच्चा बल मानकर बात की जाए तो कहना होगा कि संचय की तृष्णा और वैभव की चाह में व्यक्ति की निर्बलता ही प्रमाणित होती है। निर्बल ही धन की ओर झुकता है। वह अबलता है। वह मनुष्य पर धन की और चेतन पर जड़ की विजय है।
प्र.1 उक्त गद्यांश में अकिंचित्कर किसे कहा है –
(अ ) भगतजी चूरनवाले को
(ब ) लेखक के पहले मित्र को
(स ) लेखक के दूसरे मित्र को
(द ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(अ )भगतजी चूरनवाले को
प्र.2 वैभव की व्यंग्य शक्ति किसके आगे चूर -चूर हो जाती है
(अ )भगतजी चूरनवाले के
(ब ) लेखक के पहले मित्र के
(स ) लेखक के दूसरे मित्र के
(द ) उपर्युक्त सभी के
उत्तर-(अ )भगतजी चूरनवाले के
प्र. 3 लेखक ने पैसे को ही ताकतवर माननेवाले व्यक्ति को कहा है —
(अ )अस्थिर
(ब ) दुविधाग्रस्त
(स ) निर्बल
(द ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(स ) निर्बल
प्र. 4 लेखक ने सबल किसे कहा है –
(अ )आर्थिक रूप से सम्पन्न को
(ब ) संयमी को
(स )सांसारिक आकर्षणों से मुक्त मनुष्य को
(द ) उपर्युक्त सभी
उत्तर- (स )सांसारिक आकर्षणों से मुक्त मनुष्य को
प्र.5 लेखक ने अबलता किसे कहा है –
(अ )आर्थिक रूप से कमजोर को
(ब ) इच्छारहित मनुष्य को
(स )वैभव की चाह को
(द ) उपर्युक्त सभी को
उत्तर- (स )वैभव की चाह को
संकेत – एक बार चूरनवाले ————-विमुखता उनमे नहीं –
प्र. 1 भगतजी के प्रसन्न और संतुष्ट दिखाई देने का कारण है –
(अ ) अत्यधिक धन होना
(ब ) पैतृक सम्पति प्राप्त होना
(स )मन में अतिरिक्त की चाह न होना
(द ) उपर्युक्त सभी
उत्तर- (स )मन में अतिरिक्त की चाह न होना
प्र.2 भगत जी के मन में बाजार के प्रति कौनसा भाव नहीं है –
(अ )हठ
(ब )निषेध
(स )तिरस्कार
(द )उपर्युक्त सभी
उत्तर- (स )तिरस्कार
प्र.3 कौनसा गुण भगत जी आदर के कारण है-
(अ )निश्छल होना
(ब )सरल होना
(स )प्रसन्न व्यवहार
(द )उपर्युक्त सभी
उत्तर- (स )प्रसन्न व्यवहार
प्र.4 भगतजी बाजार को देखकर भौच्चके क्यों नहीं होते –
(अ )कोई तृष्णा न होने के कारण
(ब )मन भर कर बाज़ार जाने के कारण
(स ) अतिरिक्त की चाह न होने के कारण
(द ) उपर्युक्त सभी
उत्तर- (अ )कोई तृष्णा न होने के कारण
प्र.5 भगतजी के बाजार जाने का उद्देश्य होता है –
(अ )नमक लेने जाना
(ब )जीरा लेने जाना
(स )नमक और जीरा लेने जाना
(द )केवल घूमने जाना
उत्तर- (स )नमक और जीरा लेने जाना
स्ंकेत – इस सद्भाव के ह्रास ———– अनीति शास्त्र है –
इस सद्भाव के ह्रास पर आदमी आपस में भाई-भाई और सुहृद और पड़ोसी फिर रह ही नहीं जाते हैं और आपस में कोरे गाहक और बेचक की तरह व्यवहार करते हैं। मानो दोनों एक-दूसरे को ठगने की घात में हों। एक की हानि में दूसरे को अपना लाभ दिखता है और यह बाजार का, बल्कि इतिहास का, सत्य माना जाता है। ऐसे बाजार को बीच में लेकर लोगों में आवश्यकताओं का आदान-प्रदान नहीं होता, बल्कि शोषण होने लगता हैय तब कपट सफल होता है, निष्कपट शिकार होता है। ऐसे बाजार मानवता के लिए विडंबना हैं और जो ऐसे बाजार का पोषण करता है, जो उसका शास्त्र बना हुआ है, वह अर्थशास्त्र सरासर औोंधा है वह मायावी शास्त्र है वह अर्थशास्त्र अनीति शास्त्र है।
प्र.1 लेखक ने किस बाजार को सार्थक माना है –
(अ ) जो आवश्यकता समय काम आये
(ब ) जो कम मूल्य में अच्छी वस्तु उपलब्ध कराये
(स ) जो लूटमार और धोखाधडी न करे
(द ) उपर्युक्त सभी
उत्तर- (अ ) जो आवश्यकता समय काम आये
प्र.2 जो लोग धन या क्रय शक्ति का प्रदर्शन करते है ,ऐसे लोग ही –
(अ )छल करते
(ब )बाजारूपन बढ़ाते है
(स )कपट करते है
(द ) उपर्युक्त सभी
उत्तर- (ब )बाजारूपन बढ़ाते है
प्र.3 बाजार में छल ,कपट और लोभ की प्रवृति को लेखक ने कहा है –
(अ )मायावी
(ब ) औंधा
(स )अनीति शास्त्र
(द ) उपर्युक्त सभी
उत्तर- (द ) उपर्युक्त सभी
प्र.4 कपट और शोषण पर आधारित बाजार को लेखक ने कहा है –
(अ )अनीति शास्त्र
(ब )मानवता विरोधी
(स )मायावी
(द ) उपर्युक्त सभी
उत्तर- (ब )मानवता विरोधी
प्र.5 उक्त गद्यांश किस पाठ से लिया गया है –
(अ ) बाजार दर्शन
(ब ) भक्तिन
(स ) काले मेघा पानी दे
(द ) पहलवान की ढोलक
उत्तर- (अ ) बाजार दर्शन
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