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आत्म परिचय ,दिन जल्दी जल्दी ढलता है,हरिवंश राय बच्चन
आत्म- परिचय
मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ,
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर,
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ,
भावार्थ-कवि बच्चन कहते हैं कि मुझ पर सांसारिक उत्तरदायित्व बोझ हैं, किन्तु ह्रदय प्रेम भाव से परिपूर्ण है अर्थात सांसारिक उत्तरदायित्वके बोझ विमुख होकर प्रेम-भाव की उपेक्षा नहीं करता। किसी ने मेरे ह्रदय रुपी वीणा के तारों को अपने प्रेमपूर्ण स्पर्श से मेरे जीवन को संगीतमय कर दिया है। मै उसी प्रेम को अपने ह्रदय बसाये जीवन जी रहा हूँ।
मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ।
भावार्थ- मैं सदैव प्रेम की मदिरा में मस्त रहता हूँ। मैं अपनी कलम से प्रेम का गीत लिखता हूं ,प्रेम का गीत गाता हूं ,प्रेम का सन्देश देता हूं ,इस पर लोगों मेरे बारे में क्या कहेंगे मै इस बात की परवाह नहीं करता .
यह संसार उन कवियों को कवि होने का सम्मान देता है जो उनकी अपेक्षाओं के अनुकूल काव्य सृजन करते है . चूकि मेरा ह्रदय प्रेम भाव से परिपूर्ण है और प्रेम का समर्थक हूं इसलिए प्रेम का गीत गाता हूं ,प्रेम का ही सन्देश देता हूं .
मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ,
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता,
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ।
भावार्थ- कवि बच्चन कहते है कि मेरा ह्रदय प्रेम भाव से परिपूर्ण है और प्रेम का समर्थक हूं इसलिए मैं प्रेम का ही उदगार व्यक्त करता हूं और उपहार में भी प्रेम ही बांटता हूं । प्रेमभाव ही मेरा उद्गारौर उपहार है। प्रेम रहित संसार मुझे प्रिय नहीं है। मै ऐसे संसार का सृजन करना चाहता हूं जिसमे प्रेम के अतिरिक्त कुछ अन्य न हो .
मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ;
जग भव-सागर तरने को नावे बनाए,
मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ।
भावार्थ- कवि बच्चन कहते है कि मै अपने व्यक्तिगत जीवन की विरह वेदना की अग्नि को ह्रदय में प्रज्वलित रखते हुए , सुख-दुख दोनों स्थितियों समान में समान रहता हूं । इस संसार सागर में प्रेम को नाव बनाकर संसार की सुख-दुःख की लहरों पर तैरते हुए जीवन का आनंद लेना चाहता हूं .
मैं यौवन को उन्माद लिए फिरता हूँ,
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं हाय किसी की याद लिए फिरता हूँ।
भावार्थ- कवि बच्चन कहते है कि कि उनका ह्रदय भी युवा मन की युवावस्था की मस्ती से भरा हुआ है किन्तु इस मौज –मस्ती के पीछे व्यक्तिगत जीवन की विरह वेदना का भी मै भोक्ता हूं । कवि बच्चन कहते है कि यद्यपि मै संसार को खुशियाँ बांटने के लिए बाह्य रूप से हँसता सा जान पड़ता हूं किन्तु भीतर ही भीतर व्यक्तिगत जीवन की पीड़ा से रोता है .कवि का आशय यह है कि मेरे व्यक्तिगत दुःख से कोई दुखी न हो इसलिए मै अपने आँसू किसी को दिखता नहीं हूं . मेरे हृदय में अज्ञात प्रेयसी की स्मृतियाँ छिपी हुई है।कवि का आशय है कि संसार को खुशियाँ बांटने के लिए वह अपने जीवन की व्यक्तिगत पीड़ा को छुपाकर रखते है .
कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?
नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!
फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना!
भावार्थ- कवि बच्चन कहते है कि कि संसार ने सत्य की खोज करने का प्रयास किया ,किन्तु क्या वें इस सत्य को पा सकें कि जीवन उद्देश्य क्या है ?कवि बच्चन कहते है कि ऐसे लोग अज्ञानी है जो भौतिक सम्पदा के संग्रह को ही जीवन उद्देश्य मानकर धन-दौलत अर्जित करने में जीवन व्यतीत कर देते है .ठीक वैसे ही जैसे चिड़िया का जीवन दाना चुगने में व्यतीत हो जाता है .यह भौतिक संसार नाशवान है ,नश्वर है ,इस सत्य को जानकार भी जो जीवन सत्य को नहीं समझ पता उसे मूर्ख नहीं तो और क्या कहा जाये ?कवि बच्चन स्वीकार करते है कि संसार के बीच रहते हुए अबोधता के कारण कुछ सांसारिक बुराइयाँ उनमे भी आ गई थी ,किन्तु बोध होने पर अब उन बुराइयों को भुला देना चाहते है
मैं और, और जगे और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता,
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता!
भावार्थ- कवि बच्चन अर्थपूर्ण संसार से अपना कोई सम्बन्ध नहीं मानते है । उनके जीवन लक्ष्य संसार के जीवन लक्ष्य से भिन्न है । कवि के जीवन का उद्देश्य है प्रेम और खुशियाँ बांटना तथा संसार के जीवन का उद्देश्य है वैभव का संचय .अलग अलग मंजिल के रास्ते भी अलग अलग ही होंगे .वेई एक राह के मुसाफिर नहीं बन सकते . मैंने जिस प्रेम पूर्ण संसार की परिकल्पना की है ,जब तक वह संसार वैसा ही नहीं बन जाता है जैसा मेरा स्वप्न है ,मै अपने कल्पना के संसार को मूर्त न होनेतक बनता –मिटाता रहूँगा .
इस धरती के अधिकांश लोग धन-सम्पदा का संग्रह में लगे रहते हैं, वह भौतिक सम्पदा मेरे लिए व्यर्थ है । कवि बच्चन दौलत की इस दुनिया को ठुकराकर प्रेम पथ पर चलते रहना चाहते है।
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हो जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
भावार्थ- कवि अपनी अज्ञात प्रेयसी की स्मृति अपने हृदय में छिपाए जी रहा है। वियोग से व्यथित कवि का हृदय जब क्रंदन करता है, तो उसका वह क्रंदन काव्य रूप में प्रकट होता है। कवि के काव्य में प्रेम की शीतलता हैं, किन्तु भीतर उसकी विरह वेदना की अग्नि दहकती रहती है। कवि बच्चन का मानना है कि प्रेम की तुलना में राजमहलों का वैभव भी तुच्छ है .कवि बच्चन अपनी विवशता प्रकट करते हुए कहते है कि उनका जीवन भी भीतर से खंडित हो चुकर महल की तरह हो चुका है मेरे पास प्रेम पर लुटाने के लिए खंडित ह्रदय के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है .कवि प्रेयसी की मधुर स्मृतियों के सहारे जीवन व्यतीत कर रहा है
मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना,
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ, एक नया दीवाना!
भावार्थ- कवि बच्चन कहते है कि जब मैंने अपने व्यथित ह्रदय की पीड़ा को काव्य रूप में प्रकट किया तो लोगों ने मेरी पीड़ा को मेरा गीत समझा । कवि के व्यथित ह्रदय की पीड़ा प्राकट्य भाव को कवि की काव्य रचना समझा गया किन्तु बच्चन अपनी पहचान कवि के रूप में स्वीकारकरना नहीं चाहते । कवि चाहते है कि उन्हें प्रेम पागल हुए प्रेमी के रूप में पहचाना जाए .
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता नि:शेष लिए फिरता हूँ,
जिसको सुनकर जग झूम, उठे, लहराए,
मैं मस्ती का सन्देश लिए फिरता हूँ।
भावार्थ – कवि बच्चन कहते है कि प्रेम के प्रति उनकी दीवानगी उनके ह्रदय से ही नहीं , उनकी वेशभूषा से भी प्रकट होती है। उसका जीवन प्रेम और मस्ती से परिपूर्ण है। कवि अपने ह्रदय की प्रेम की कोमल भावनाओं का सन्देश प्रेम गीत रूप में प्रकट करता है ताकि लोग उनके गीतों को सुनकर ख़ुशी से गाने और मस्ती से झूमने लगे .
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