12 up board,nauka vihar,bapoo ke prati,sumitra nandan pant,
नौका विहार,बापू के प्रति,सुमित्रानन्दन पंत
नौका विहार/बापू के प्रति सुमित्रानन्दन पंत
।- शांत, स्निग्ध………………………… मृदुल लहर
नौका-विहार
शान्त, स्निग्ध ज्योत्स्ना उज्ज्वल!
अपलक अनन्त नीरव भतल!
सैकत शय्या पर दुग्ध धवल, तन्वंगी गंगा, ग्रीष्म विरल.
लेटी है श्रान्त, क्लान्त. निश्चल!
तापस-बाला गंगा निर्मल, शशिमुख से दीपित मृदु करतल,
लहरें उर पर कोमल कुन्तल!
गोरे अंगों पर सिहर-सिहर, लहराता तार-तरल सुन्दर
चंचल अंचल-सा नीलाम्बर!
साड़ी की सिकुड़न-सी जिस पर, शशि की रेशमी विभा से भर
सिमटी हैं वर्तुल, मृदुल लहर!
प्रश्न-1 ग्रीष्म के कारण गंगा कैसी लग रही है?
उत्तर ग्रीष्म के कारण क्षीण धार वाली गंगा तटों के बीच बहती हुई ऐसी जान पड़ती है जैसे कोई कृशकाय युवती बालू शैया पर ग्रीष्म से व्यथित होकर थकी हुई शांत लेटी हुई हो।
प्रश्न-2 गंगाजल में प्रतिबिम्बित चन्द्रमा कैसा प्रतीत हो रहा है?
उत्तर गंगाजल में प्रतिबिम्बित चन्द्रमा ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे गंगारूपी तपस्विनी अपने चन्द्रमुख को हथेली पर रखे लेटी हो और उसमें अपना प्रतिबिम्ब निहार रही है।
प्रश्न-3 गंगा की लहरे कैसी लग रही है?
उत्तर गंगा की लहरे ऐसी लग रही है जैसे गंगा के बिखरे हुए उसके वक्षस्थर पर लहरा रहे हो।
प्रश्न-4 गंगाजल पर पड़ती हुई तारों की परछाई कैसी जान पड़ती है?
उत्तर गंगाजल पर पड़ती हुई तारों की परछाई ऐसी जान पड़ती है, जैसे गंगारूपी तपस्विनी बाला की देह पर उसका तारों जड़ा नीला ऑंचल लहरा रहा हो।
प्रश्न-5 तारों की परछाई से प्रतिबिम्बित तारे लहरों पर कैसे जान पड़ते है?
उत्तर लहरों पर तारों की परछाई ऐसी जान पड़ती है जैसे लेटी हुई गंगा की रेशमी साडी में सलवट पड़ गई हो।
प्रश्न-6 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार बतलाइए।
उत्तर अनुप्रास, उपमा और मानवीकरण?
प्रश्न-7 कवि का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए।
उत्तर कविता का शीर्षक है नौका विहार और कवि है- सुमित्रानंदन पंत।
ठण् चॉंदनी रात का ………………………… स्वप्न सघन
2 चाँदनी रात का प्रथम प्रहर,
हम चले नाव लेकर सत्वर
सिकता की सस्मित सीपी पर मोती की ज्योत्स्ना रही विचर
लो, पालें चढ़ीं, उठा लंगर!
मृदु मन्द-मन्द, मन्थर-मन्थर, लघु तरणि, हंसिनी-सी सुन्दर,
तिर रही, खोल पालों के पर!
निश्चल जल के शुचि दर्पण पर बिम्बित हो रजत पुलिन निर्भर
दुहरे ऊँचे लगते क्षण भर!
कालाकांकर का राजभवन सोया लज में निश्चिन्त, प्रमन ।
पलकों पर वैभव-स्वप्न सघन!
प्रश्न-1 कवि पंतजी ने गंगा तट के सौन्दर्य का वर्णन किन शब्दों में किया है?
उत्तर गंगा तट ऐसा लग रहा है मानों रेतीली सीपी पर चन्द्रमा रूपी मोती चमक रहे हों।
प्रश्न-2 नदी में तैरती हुई नाव कैसी लग रही है?
उत्तर नदी में तैरती हुई नाव ऐसी लग रही है जैसे नाव अपने पाल रूपी पंख खोलकर हंसिनी के समान मंथर गति से तैर रही हो।
प्रश्न-3 गंगाजल में काला कॉंकर के राजभवन का प्रतिबिम्ब कैसा लग रहा है?
उत्तर गंगाजल में काला कॉंकर का राजभवन ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे वह गंगाजल की शैया पर स्वप्न में खोया हुआ सो रहा है।
प्रश्न-4 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार का नाम बतलाइए?
उत्तर अनुप्रास, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा।
प्रश्न-5 कवि का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए।
उत्तर कविता का शीर्षक है नौका विहार और कवि है- सुमित्रानंदन पंत।
ठण् नौका से उठती ………………………… रूक-रूक।
3 नौका से उठतीं जल-हिलोर, .
हिल पड़ते नभ के ओर-छोर!
विस्फारित नयनों से निश्चल कुछ खोज रहे चल तारक दल
ज्योतित कर नभ का अन्तस्तल;
जिनके लघु दीपों को चंचल, अंचल की ओट किए अविरल
फिरती लहरें लुक-छिप पल-पल!
मल. पैरती परी-सी जल में कल,
रुपहरे कचों में हो ओझल!
लहरों के घूघट से झुक-झुक, दशमी का शशि निज तिर्यक मुख
दिखलाता मुग्धा-सा रुक-रुक!
प्रश्न-1 लहरों के हिलने और शांत होने पर तारों जड़ित आकाश का प्रतिबिम्ब कैसा जान पड़ता है?
उत्तर लहरों के हिलने पर आकाश हिलता हुआ सा जान पड़ता है तथा लहरों के स्थिर होने पर प्रतिबिम्बित तारे ऐसे लगते है जैसे जल के भीतरी भाग को प्रकाशित कर ऑंखें फाड़े कुछ खोज रहे है।
प्रश्न-2 लहरों की चंचलता से प्रतिबिम्बित दशमी का चन्द्रमा कैसा जान पडता है?
उत्तर चंचल लहरों पर प्रतिबिम्बित चन्द्रमा ऐसा जान पड़ता है जैसे कोई नायिका अपना मुख कभी घूंघट से ढक लेती है और कभी उघाड लेती है।
प्रश्न-3 चंचल लहरोें पर प्रतिबिम्बित शुक्र तारा कैसा जान पड़ता है?
उत्तर चंचल लहरों पर प्रतिबिम्बित शुक्र ऐसा जान पड़ता है जैसे वह गंगा के लहर रूपी केशों से लुका-छुपी खेल रहा हो।
प्रश्न-4 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार बतलाइए?
उत्तर रूपक, उपमा और मानवीकरण।
प्रश्न-5 कवि का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए।
उत्तर कविता का शीर्षक है नौका विहार और कवि है- सुमित्रानंदन पंत।
ब्ण् जब पहुँची चपला ………………………… को विलोक
4 जब पहुँची चपला बीच धार
छिप गया चाँदनी का कगार!
दो बाँहों से दूरस्थ तीर धारा का कृश कोमल शरीर
आलिंगन करने को अधीर!
अति दूर, क्षितिज पर विटप-माल लगती भ्रू-रेखा-सी अराल,
अपलक नभ, नील-नयन विशाल,
माँ के उर पर शिशु-सा, समीप, सोया धारा में एक द्वीप,
उर्मिल प्रवाह को कर प्रतीप,
वह कौन विहग? क्या विकल कोक, उड़ता हरने निज विरह शोक?
छाया को कोकी का विलोक!
प्रश्न-1 गंगा के मध्य से गंगा के दोनों तट कैसे जान पड़ रहे थे?
उत्तर गंगा के दोनों तट ऐसे जान पड़ रहे थे जैसे अपनी दोनों बाहें फैलाए कृशकाय गंगा को अपनी बाहों में आलिंगन बद्ध करनें के लिए अधीर हो रहे है।
प्रश्न-2 दूर क्षितिज पर वृक्षों की पंक्ति कैसी जान पड़ रही है?
उत्तर दूर क्षितिज पर वृक्षों की पंक्ति आकाश के नील वर्णी नैत्रों की तिरछी भौह के समान जान पड़ रही थी।
प्रश्न-3 गंगा के मध्य द्वीप कैसा जान पड़ता है?
उत्तर गंगा के मध्य द्वीप ऐसा जान पड़ता था जैसे कोई छोटासा शिशु अपनी मॉं के आंचल से चिपककर सोया हुआ है।
प्रश्न-4 आकाश में उड़ता हुआ पंछी कैसा जान पड़ता है?
उत्तर आकाश में उड़ता हुआ पंछी ऐसा जान पड़ता है जैसे चकवा अपनी खोई हुई चकवी को खोज रहा है।
प्रश्न-5 चकवा गंगा में प्रतिबिम्बित परछाई को क्या समझ रहा है।
उत्तर चकवा गंगा में प्रतिबिम्बित अपनी परछाई को अपनी खोई हुई चकवी समझ रहा है।
प्रश्न-6 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार बतलाइए?
उत्तर रूपक, उपमा, मानवीकरण, भ्रांतिमान।
प्रश्न-7 कवि का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए।
उत्तर कविता का शीर्षक है नौका विहार और कवि है- सुमित्रानंदन पंत।
म्ण् पतवार घुमा ………………………… सहोत्साह
5 पतवार घुमा, अब प्रतनु भार
नौका घूमी विपरीत धार।
डाँड़ों के चल करतल पसार, भर-भर मुक्ताफल फेन-स्फार।
बिखराती जल में तार-हार!
चाँदी के साँपों-सी रलमल नाचती रश्मियाँ जल में चल
रेखाओं-सी खिंच तरल-सरल!
लहरों की लतिकाओं में खिल, सौ-सौ शशि, सौ-सौ उडु झिलमिल
फैले फूले जल में फेनिल;
अब उथला सरिता का प्रवाह, लग्गी से ले-ले सहज थाह।
हम बढ़े घाट को सहोत्साह!
प्रश्न-1 डॅंाडो के चलाने से जल में जो झाग उठ रहे थे, वे कैसे जान पड़ रहे थे?
उत्तर डॉंडो के चलाने से जल में झाग उठ रहे थे, वे ऐसे जान पड़ रहे थे जैसे पतवार रूपी हथेलियॉं तारे रूपी, मोती बिखेर रही है।
प्रश्न-2 शांत लहर में पतवार से उठने वाली लहरे कैसी लग रही थी?
उत्तर शांत लहर से पतवार से उठने वाली लहरे ऐसी लग रही थी जैसे चॉंदी के सांॅप रंेग रहे हो।
प्रश्न-3 लहरों और झागों से चन्द्रमा और तारों के प्रतिबिम्ब कैसे जान पड़ रहे थे?
उत्तर लहरों और झागों से प्रतिबिम्बित चन्द्रमा सौ-सौ चन्द्रमा बनकर तथा एक-एक तारा सौ-सौ तारे बनकर झिलमिला रहे थे।
प्रश्न-4 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार बतलाइए?
उत्तर रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा और मानवीकरण।
प्रश्न-5 कवि का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए।
उत्तर कविता का शीर्षक है नौका विहार और कवि है- सुमित्रानंदन पंत।
म्ण् ज्यों -ज्यों लगती ………………………… अमरत्व दान।
6 ज्यों-ज्यों लगती है नाव पार
उर के आलोकित शत विचार।
इस धारा-सा ही जग का क्रम, शाश्वत इस जीवन का उद्गम,
शाश्वत है गति, शाश्वत संगम!
शाश्वत नभ का नीला विकास, शाश्वत शशि का यह रजत हास,
शाश्वत लघु लहरों का विलास!
हे जग-जीवन के कर्णधार! चिर जन्म-मरण के आरपार,
शाश्वत जीवन-नौका-विहार!
मैं भूल गया अस्तित्व ज्ञान, जीवन का यह शाश्वत प्रमाण,
करता मुझको अमरत्व दान!
प्रश्न-1 कवि ने जलधारा और जीवन मंे क्या साम्य बतलाया ?
उत्तर इस संसार का क्रम भी जलधारा के समान है, जलधारा सतत प्रवाहवान रहती है इसी प्रकार जीवन की गति एवं मिलन भी शाश्वत है।
प्रश्न-2 कवि ने प्रवाहित लहरों के माध्यम से किस जीवन सत्य को उद्घाटित किया है?
उत्तर जिस प्रकार लहरें पानी से उत्पन्न होकर पानी में विलीन हो जाती है और फिर नई लहर बनकर उत्पन्न हो जाती है, इसी भॉंति जन्म और मृत्यु का क्रम चलता रहता है।
प्रश्न-3 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार का नाम बतलाइए?
उत्तर उपमा एवं रूपक।
प्रश्न-4 कवि का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए।
उत्तर कविता का शीर्षक है नौका विहार और कवि है- सुमित्रानंदन पंत।
सुमित्रानन्दन पंत / बापू के प्रति
।ण् तुम मॉंसहीन ………………………… मानवपन
बापू के प्रति
तुम मांसहीन, तुम रक्तहीन
हे अस्थिशेष! तुम अस्थिहीन,
तुम शुद्ध बुद्ध आत्मा केवल ।
हे चिर पुराण! हे चिर नवीन!
तुम पूर्ण इकाई जीवन की,
जिसमें असार भव-शून्य लीन,
आधार अमर, होगी जिस पर
भावी की संस्कृति समासीन।
2 तुम मांस, तुम्ही हो रक्त-अस्थि
निर्मित जिनसे नवयुग का तन,
तुम धन्य! तुम्हारा निरूस्व त्याग
हे विश्व भोग का वर साधन;
इस भस्म-काम तन की रज से,
जग पूर्ण-काम नव जगजीवन,
बीनेगा सत्य-अहिंसा के
ताने-बानों से मानवपन!
प्रश्न-1 कवि ने गांॅधीजी की देह का वर्णन किस रूप में किया है?
उत्तर कवि ने गॉंधीजी की देह को दुर्बल, मॉस एवं रक्त हीन तथा हड्डियों का ढ़ाचा मात्रा बतलाया है। जिसे देखकर ऐसा लगता है जैसे देह में अस्थियॉं भी नहीं है।
प्रश्न-2 कवि के गॉंधीजी की क्या विशेषता बतलाई है?
उत्तर गॉंधीजी में प्राचीन एवं नवीन आदर्शों का समन्वय है। जीवन की पूर्णता है।
प्रश्न-3 कवि ने गॉंधीजी के आदर्शों का क्या प्रभाव बतलाया है?
उत्तर कवि के अनुसार गॉंधीजी के आदर्शो पर भविष्य की संस्कृति और सम्यता प्रतिष्ठित होगी।
प्रश्न-4 मॉंस, रक्त और हड्डियों से शरीर का निर्माण होता है, तो गॉंधी के आदर्शो से किसका निर्माण होगा?
उत्तर गॉंधीजी के आदर्शो से नवयुग का निर्माण होगा।
प्रश्न-5 गॉंधीजी की कौनसी विशेषता मानव कल्याण का कारण बनेगा?
उत्तर गॉंधीजी की निःस्वार्थ भावना मानव कल्याण का कारण बनेगा।
प्रश्न-6 कवि के अनुसार नया संसार गॉधीजी के किन सिद्धान्त को स्वीकारेगा?
उत्तर नया संसार गॉंधीजी के सत्य और अहिंसा के सिद्धान्त को स्वीकारेगा।
प्रश्न-7 कवि ने गॉंधीजी के सत्य और अहिंसा का क्या प्रभाव बतलाया?
उत्तर गॉंधीजी के सत्य और अहिंसा के सिद्धान्त से मानव जीवन सुखी और समृद्ध बनेगा।
प्रश्न-8 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार बतलाइए?
उत्तर रूपक, यमक और विरोधाभास
प्रश्न-9 कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?
उत्तर कविता का शीर्षक है-बापू के प्रति और कवि है- सुमित्रा नंदन पंत
ठण् सुख भोग खोजने ………………………… सरोज
3 सुख भोग खोजने आते सब,
आए तुम करने सत्य-खोज
जग की मिट्टी के पुतले जन,
तुम आत्मा के, मन के मनोज!
जड़ता, हिंसा, स्पर्धा में भर
चेतना, अहिंसा, नम्र ओज,
पशुता का पंकज बना दिया
तुमने मानवता का सरोज!
प्रश्न-1 कवि ने सामान्य जन और बापू के जीवन में क्या अन्तर बतलाया है।
उत्तर सामान्य जन सुख भोग को जीवन का उद्धेश्य मानते है जबकि बापू ने सत्य की खोज को जीवन का उद्धेश्य बनाया।
प्रश्न-2 बापू की देह में किसका निवास था और वे किसके समान थे?
उत्तर बापू की देह में सत्य आत्मा का निवास था तथा व मन को प्रसन्न करने वाले कमल के समान थे।
प्रश्न-3 बापू ने मानव की अकर्मण्यता, हिंसा एवं प्रतिद्वन्द्विता को दूर कर किन भावों को जाग्रत किया?
उत्तर बापू ने मानव समाज में ज्ञान अहिंसा और आत्मिक शक्ति जैसे मानवीय गुणों को जाग्रत किया।
प्रश्न-4 कवि ने कीचड कमल और सरोवर किसे कहा है?
उत्तर कवि ने वर्ग भेद, जातिभेद हिंसा को कीचड कहा है तो सत्य अहिंसा त्याग को कमल तथा मानव समाज को सरोवर कहा है
प्रश्न-5 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार का नाम बतलाइए?
उत्तर अनुप्रास एवं रूपक
प्रश्न-6 कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?
उत्तर कविता का शीर्षक है-बापू के प्रति और कवि है- सुमित्रा नंदन पंत
ब्ण् पशुबल की काश ………………………… बना मुक्ति
4 पशु-बल की कारा से जग को
दिखलाई आत्मा की विमुक्ति,
विद्वेष घृणा से लड़ने को
सिखलाई दुर्जय प्रेम-युक्ति,
वर श्रम-प्रसूति से की कृतार्थ
तुमने विचार परिणीत उक्ति
विश्वानुरक्त हे अनासक्त,
सर्वस्व-त्याग को बना मुक्ति!
प्रश्न-1 बापू ने अहिंसा के आधार पर आत्मा की मुक्ति की राह कब दिखलाई?
उत्तर जिस समय यह संसार पाश्विक शक्तियों के कारागार में कैद होकर कराह रहा था।
प्रश्न-2 बापू ने किसके प्रति भी प्रेम का व्यवहार करने की बात कही?
उत्तर बापू ने ईर्ष्या, द्वेष एवं घृणा का भाव रखने वालों के प्रति भी प्रेम का व्यवहार करने की बात कही।
प्रश्न-3 आप कैसे कह सकते है कि बापू की कथनी करनी में अन्तर न था?
उत्तर बापू जो कहते थे उसे यथार्थ रूप में व्यावहारिक भी बनाते थे।
प्रश्न-4 कवि ने बापू को किनमें से एक बतलाया है?
उत्तर कवि ने बापू को सर्वस्व त्यागकर मोक्ष प्राप्त करने वालों में से एक बतलाया।
प्रश्न-5 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार बतलाइए?
उत्तर रूपक, उपमा, मानवीकरण एवं पुनरूक्ति
प्रश्न-6 कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?
उत्तर कविता का शीर्षक है-बापू के प्रति और कवि है- सुमित्रा नंदन पंत
क्ण् उस के चरखें ………………………… प्रवाद
5 उर के चरखे में कात सूक्ष्म,
युग-युग का विषय-जनित विषाद
गुंजित कर दिया गगन जग का
भर तुमने आत्मा का निनाद।
रँग-रँग खद्दर के सूत्रों में,
नव जीवन आशा, स्पृहाह्लाद,
मानवी कला के सूत्रधार।
हर लिया यन्त्र कौशल प्रवाद!
प्रश्न-1 कवि ने बापू के चरखें के बारे में क्या कहा?
उत्तर बापू का चरखा आन्दोलन भौतिक अथवा आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही नहीं या बल्कि आत्मिक शुद्धि का माध्यम भी था।
प्रश्न-2 कवि ने बापू के चरखें का क्या प्रभाव बतलाया?
उत्तर बापू ने चरखें के समान ही युगों की वेदना को कातकर उसका रूप परिवर्तित कर दिया। भौतिक वासनाओं का परित्याग करके, आत्मा का आनन्दमयी संगीत बनाकर आकाश में गुंजित कर दिया ।
प्रश्न-3 बापू ने चरखें के माध्यम से किसका सूत्रपात किया?
उत्तर बापू ने चरखें के माध्यम से नवीन युग और नवीन कला का सूत्रपात किया।
प्रश्न-4 किन आधारों पर कवि ने बापू को नव आदर्शो का निर्माता कहा?
उत्तर बापू ने युगों की वासना से उत्पन्न वेदना का अन्त किया, यन्त्रीकरण से उत्पन्न स्ंाघर्ष एवं दुख को दूर किया तथा आत्मिक ज्योति से प्रकाशित एक नई सम्यता का प्रारम्भ किया।
प्रश्न-5 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार का नाम बतलाइए?
उत्तर रूपक अलंकार
प्रश्न-6 कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?
उत्तर कविता का शीर्षक है-बापू के प्रति और कवि है- सुमित्रा नंदन पंत
म्ण् साम्राज्यवाद ………………………… पद प्रणत शान्त
6 साम्राज्यवाद था कंस, बन्दिनी
मानवता, पशु-बलाऽक्रान्त,
श्रृंखला-दासता, प्रहरी बहु
निर्मम शासन-पद शक्ति-भ्रान्त,
कारागृह में दे दिव्य जन्म
मानव आत्मा को मुक्त, कान्त,
जन-शोषण की बढ़ती यमुना
तुमने की नत, पद-प्रणत शान्त!
प्रश्न-1 कवि ने अंग्रेजी साम्राज्यवाद को किसके समान बतलाया और क्यों?
उत्तर कवि ने अंग्रेजी साम्राज्यवाद को कंस के समान बतलाया। भारतवासी देवकी की तरह कैद में थे, पैर में गुलामी की बेड़िया पड़ी थी, निर्दय अंग्रेज अधिकारियों का पहरा था।
प्रश्न-2 कवि ने देवकी और बापू में क्या साम्य बतलाया?
उत्तर देवकी ने कृष्ण को जन्म देकर कंस का अन्त करवाया, उसी भॉंति बापू ने जेल यात्रा कर भारतियों को मुक्त कराया।
प्रश्न-3 बापू और कृष्ण में कवि ने क्या साम्य बतलाया?
उत्तर श्री कृष्ण के चरणों का स्पर्श पाकर बाढ़ से उफनती यमुना शंात हो गई थी, उसी तरह बापू ने अपने सत्य और अहिंसा के प्रभाव से अंगेजी सरकार को झुका दिया। जैसे कृष्ण ने कंस का अन्त किया, वैसे ही बापू ने अंग्रेजी सरकार का अन्त किया।
प्रश्न-4 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार का नाम बतलाइए?
उत्तर अनुप्रास, रूपक और दृष्टान्त
प्रश्न-5 कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?
उत्तर कविता का शीर्षक है-बापू के प्रति और कवि है- सुमित्रा नंदन पंत
थ्ण् कारा थी संस्कृति ………………………… तुमको प्रणाम
7 कारा थी संस्कृति विगत, भित्ति
बहु धर्म-जाति-गति रूप-नाम,
बन्दी जग-जीवन, भू विभक्त
विज्ञान-मूढ़ जन प्रकृति-काम;
आये तुम मुक्त पुरुष, कहने-
मिथ्या जड़ बन्धन, सत्य राम,
नानृतं जयति सत्यं मा भैः,
जय ज्ञान-ज्योति, तुमको प्रणाम!
प्रश्न-1 संस्कृति को बंदिनी क्यों कहा?
उत्तर क्योंकि सभ्यता और संस्कृति के अनुसार कुछ भी करने की स्वतन्त्रता न थी, सब कुछ अंगेजों की इच्छानुसार ही होता था।
प्रश्न-2 प्रगति में बाधक कारण क्या थे?
उत्तर धर्म और जाति का भेद, ऊॅच नीच की भावना, काले-गोरें की दीवारें प्रगति में बाधा थी।
प्रश्न-3 विज्ञान की प्रगति के कारण विवेकहीन मनुष्य क्या कर रहा था?
उत्तर विज्ञान की प्रगति के कारण विवेकहीन मनुष्य प्रकृति को अपनी इच्छानुसार संचालित करने का प्रयत्न कर रहा था।
प्रश्न-4 विषम परिस्थितियों से उत्पन्न विसंगति से मुक्त होने का बापू ने क्या संदेश दिया ?
उत्तर बापू ने संदेश दिया कि संसार के सारे रिश्ते-नाते झूठे और व्यर्थ है, इस संसार में ईश्वर ही शाश्वत है, सत्य है विजय सदैव सत्य की होती है, असत्य की नहीं।
प्रश्न-5 बापू को कवि ने किस शब्द से सम्बोधित किया?
उत्तर जीवन मुक्त योगी कहकर सम्बोधित किया।
प्रश्न-6 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार बतलाइए?
उत्तर अनुप्रास एवं रूपक अलंकार
प्रश्न-7 कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?
उत्तर कविता का शीर्षक है-बापू के प्रति और कवि है- सुमित्रा नंदन पंत
परिवर्तन
1.
आज बचपन का कोमल गात
जरा को पीला पात !
चार दिन सुखदै चाँदनी रात
और फिर अन्धकार, अज्ञात !
शिशिर-सा झर नयनों का नीर
झुलस देता गालों के फूल ।
प्रणय का चुम्बन छोड़ अधीर
अधर जाते अधरों को भूल !
मृदुल होठों का हिमजले हास
उड़ा जाता निरूश्वास समीर,
सरल भौंहों का शरदाकाश
घेर लेते घन, घिर गम्भीर !
शून्य साँसों का विधुर वियोग
छुड़ाता अधर मधुर संयोग,
मिलन के पल केवल दो चार,
विरह के कल्प अपार !
अरे, वे अपलक चार नयन,
आठ आँसू रोते निरुपाय,
उठे रोओं के आलिंगन
कसक उठते काँटों-से हाय !
प्रश्न .(प) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
उत्तर .शीर्षक का नामकृ परिवर्तन।
कवि का नामदृसुमित्रानन्दन पन्त।
प्रश्न (पप). रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्त(पप) . रेखांकित अंश की व्याख्या-मनुष्य को इस संसार में प्रियजनों से मिलने का सुख बहुधा कुछ ही पल मिल पाता है। अभी वह उन क्षणों को पूर्ण आनन्द भी नहीं ले पाता कि वियोग का क्षण आ पहुँचता है, जो अनन्त काल तक खिंचता चला जाता है। वस्तुतरू समय की गति संयोग में अत्यधिक अल्पकालिक और वियोग में अत्यन्त दीर्घकालिक हो जाती है। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता। मिलन-विरह समकालिक है। मिलन के क्षण आनन्द की अनुभूति कराते हैं इसलिए वे शीघ्र बीत गये प्रतीत होते हैं, जबकि विरह के क्षण दुरूखपूर्ण होते हैं। कष्ट से व्यतीत होने के कारण वे स्थायी रूप से रुक गये प्रतीत होते हैं।
प्रश्न (पपप) बचपन का कोमल और सुन्दर शरीर वृद्धावस्था आने पर कैसा हो जाता है।
उत्तर(पपप) बचपन का कोमल शरीर वृद्धावस्था आने पर पीले, सूखे, खुरदरे पत्ते के समान हो जाता है।
प्रश्न (पअ) वृद्धावस्था की गहरी साँसें किसे उड़ा देती हैं?
उत्तर(पअ) वृद्धावस्था की गहरी साँसें बचपन की होंठों पर ओस की बूंद के समान निर्मल और मोहक हँसी को उड़ा देती हैं।
प्रश्न (अ) कवि ने सुःख और दुःख की क्या समयावधि बतायी है?
उत्तर(अ) कवि ने सुरूख के क्षणों को दो-चार दिन यानी बहुत कम तथा दुरूख के समय को कल्पों के समान लम्बा (लगभग सम्पूर्ण जीवन) बताया है।
2.
अहे निष्ठुर परिवर्तन !
तुम्हारा ही तांडव नर्तन
विश्व का करुण विवर्तन !
तुम्हारा ही नयनोन्मीलन,
निखिल उत्थान, पतन !
अहे वासुकि सहस्रफन !
लक्ष अलक्षित चरण तुम्हारे चिह्न निरन्तर
छोड़ रहे हैं जग के विक्षत वक्षःस्थल पर !
शत-शत फेनोच्छ्वसित, स्फीत फूत्कार भयंकर
घुमा रहे हैं घनाकार जगती का अम्बर ।
मृत्यु तुम्हारा गरल दंत, कंचुक कल्पान्तर
अखिल विश्व ही विवर,
वक्र कुण्डल
दिङमंडल !
प्रश्न (प) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
पशीर्षक का नाम दृ परिवर्तन।
कवि का नामदृसुमित्रानन्दन पन्त।
प्रश्न (पप) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर(पपद्ध रेखांकित अंश की व्याख्या-कवि ने परिवर्तन को हजार फनों वाले नागराज वासुकि का रूप दिया है। और बताया है कि परिवर्तन रूपी सर्प के रहने का बिल (विवर) सम्पूर्ण विश्व है, क्योंकि परिवर्तन सर्वत्र ही व्याप्त है। सम्पूर्ण दिशाओं का मण्डल ही इसकी गोलाकार कुण्डली है। सभी दिशाओं और सम्पूर्ण संसार में ऐसा कोई भी स्थान नहीं बचा है जहाँ परिवर्तन का प्रभाव न होता हो।
(पपप) कवि ने निष्ठुर किसे कहा है?
उत्तर(पपप) कवि ने परिवर्तन को निष्ठुर कहा है।
उत्तर(पअ) नित्यप्रति होने वाले परिवर्तन वासुकि सर्प के पैरों के समान दृष्टिगोचर नहीं होते।
प्रश्न (पअ) नित्यप्रति होने वाले परिवर्तन किसके समान दृष्टिगोचर नहीं होते?
प्रश्न (अ) कवि ने मृत्यु को क्या बताया है?
उत्तर(अ) कवि ने मृत्यु को वासुकि नाग का विषैला दाँत बताया है।
सूक्तिपरक पंक्तियों की संसदर्भ व्याख्या
;3द्ध इस धारा सा ही जग का क्रम,
शाश्वत इस जीवन का उद्गम।
शाश्वत हैं गति, शाश्वत संगम।
व्याख्या – कवि कहता हैं जगत रूपी जलधारा का उद्गम नित्य है। जलधारा का जो जल आगे बह जाता हैं, वह लौट कर नही आता, पर धारा समाप्त नही होती। उद्गम स्थान पर नया नया जल प्रतिक्षण उत्पन्न होकर बहता रहता है। संसार में जीवन का प्रवाह भी इसी प्रकार का है। निरंतर सृष्टि का क्रम चल रहा है – जो जाते हैं, उनका स्थान दूसरे ले लेते हैं, प्रवाह निरंतर चलता है।
;2द्ध गूँजते है सबके दिन चार
सभी फिर हाहाकार।
व्याख्या – ‘गूँजते दिन चार’ में कवि किसी शहनाई के स्वरों का ध्वनन कराता है। जैसे शहनाई के स्वर थोड़ी देर उठकर और सर्वत्र हर्षोल्लास का संचार करके अंत में मौन में, निस्तब्धता में विलीन हो जाते हैं, उसी प्रकार व्यक्ति का सुख-सौभाग्य भी दो-चार दिन उत्कर्ष को प्राप्त होकर अंत में विनष्ट हो जाता है।
;3द्ध चुका लेता दुःख कल ही ब्याज, काल को नहीं किसी की लाज!
व्याख्या – कवि का मानना हैं कि हमारे इस जगत में सभी प्राणियों के जीवन में केवल कुछ ही दिनों अर्थात् अल्प-काल के लिए ही सुखद समय आता हैं तथा पुनः दुःख का ही बोल-बाला होता है। दुःख के ही कारण सब कहीं हाहाकार मचा हुआ है। यह भी कहा जा सकता हैं कि सुख तो क्षणिक एवं सीमित हैं जबकि दुःख बहुत अधिक तथा अनन्त है।
;4द्ध चार दिन सुखद चाँदनी रात,
और फिर अंधकार, अज्ञात।
अथवा
मिलन के पल केवल दो-चार।
विरह के कल्प अपार।।
व्याख्या – इस संसार में कुछ ही दिनों तक सुखदायी चाँदनी रात रहती हैं और थोड़े समय में अंधकार से परिपूर्ण कृष्ण पक्ष की वे रातें आ जाती हैं, जिनमें कुछ भी दिखाई नहीं देता। भाव यह हैं कि इस संसार में थोड़े समय तक आहाद, प्रसन्नता, मनोहरता और उल्लास का वातावरण रहता हैं और उसके बाद क्लेश, दुख, कुरूपता, अवसाद और खिन्नता का समय आ जाता है, अर्थात् यहाँ आमोद-प्रमोद चिरस्थायी नहीं है। बचपन में कोमल तथा सुंदर लगने वाला शरीर बुढ़ापा आने पर पीले पत्ते के समान अनाकर्षक और कमजोर पड़ जाता है। फूलों के समान सुन्दर और रक्तिम गालों पर पड़े हुए दुःख के आँसू उन्हें झुलसाकर कुरूप बना देते है। चाँदनी रातों की तरह मिलन का सुख भी क्षणिक होता है। उसके बाद अनन्त काल तक विरह वेदना में जलना पड़ता है।
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