राबर्ट नर्सिंग होम में प्रभाकर -पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ राबर्ट नर्सिंग होम में प्रभाकर जी द्वारा लिखित रिपोर्ताज है। इसमें लेखक ने इन्दौर के राबर्ट नर्सिंग होम की एक साधारण घटना को इतने मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है कि यह घटना हमारे लिए सच्चे धर्म अर्थात मानव-सेवा और समता का पाठ पढ़ाने वाली घटना बन गई है। लेखक ने इस नर्सिंग होम में सेवारत तीन ईसाई महिलाओं-मदर मारिट, मदर टेरेजा और सिस्टर किस्ट हैल्ड की उदार मानवता तथा निःस्वार्थ भाव से मनुष्य की सेवा करने का वर्णन किया है।
लेखक का अतिथि से परिचारक बनना
लेखक जिनके यहाँ अतिथि बनकर ठहरे हुए थे , वह आतिथेया अचानक बीमार हो गईं ,जिसके कारण आतिथेया इन्दौर के राबर्ट नर्सिंग होम में भर्ती कराना पड़ा। देखभाल के लिए लेखक को भी साथ जाना पड़ा .इसी नर्सिंग होम में लेखक परिचय मदर मार्गरेट, मदर टेरेजा और क्रिस्ट हैल्ड से होती है।
पीड़ितों के जीवन में हँसी बिखेरती मदर टेरेजा
लेखक अपने बीमार आतिथेया के समीप ही बैठे हुए थे । उसी समय राबर्ट नर्सिंग होम की अध्यक्षा मदर टेरेजा वहां आती है । मदर टेरेजा ने रोगी के परिजनों को अत्यंत आत्मीयता और स्नेहिल शब्दों में समझाया कि उन्हें रोगी के पास निराश और दु:खी चेहरा लेकर नहीं जाना चाहिए।
तत्पश्चात मदर टेरेजा ने दोनों हाथों से रोगी के दोनों गाल थपथपाए, ऐसा करते ही रोगी के चेहरे पर एक मुसकान आ गई। यह सब देखकर लेखक के चेहरे पर हँसी उबर आती है ., तभी डॉक्टर कक्ष में प्रवेश करता है और मदर टेरेजा से कहता है कि तुम अपनी बातों से ही जीवन से हताश-निराश रोगियों में हँसी बिखेर देती हो।
मदर टेरेजा और क्रिस्ट हैल्ड साथ-साथ
मदर टेरेजा फ्रांस की रहने वाली थी और क्रिस्ट हैल्ड जर्मनी की रहने वाली थी .फ़्रांस और जर्मनी किसी समय एक दूसरे के शत्रु देश थे ,किन्तु मदर टेरेजा और
क्रिस्ट हैल्ड दोनों का रूप, रसऔर जीवन उद्देश्य एक जैसा जान पड़ रहा था । दोनों में कहीं कोई भेद नजर नहीं आ रहा था । लेखक यह देखकर अचंभित होते है कि कि जर्मनी के हिटलर ने फ्रांस को तबाह कर दिया था,दोनों देश एक-दूसरे के शत्रु देश बन गए थे, लेकिन यहाँ मदर टेरेजा और क्रिस्ट हैल्ड के बीच मैत्री भाव स्पष्ट दिखाई दे रहा था। लेखक को अनुभव होता है कि ये दोनों विरोधी देशों की होने के बावजूद एक ही जगह पर एक हीउद्देश्य के लिए कार्य कर रही हैं। मनुष्यता और सेवा भाव सभी प्रकार की दरारों को भर देता है और दीवारों को गिरा देता है .
भेदभाव की दीवारें मनुष्य द्वारा निर्मित
लेखक मदर टेरेजा एवं क्रिस्ट हैल्ड को एक साथ एक ही जगह एकही उद्देश्य के लिए बिना किसी भेद-भाव के परस्पर प्रेम के साथ कार्य करते हुए देखकर सोचते है कि धर्म, जाति. राष्ट. वर्ग आदि को आधार बनाकर मनुष्य-मनुष्य के बीच भेदभाव करने वाला भी मनुष्य ही है और भेदभाव बिना साहचर्य भाव से रहनेवाला भी मनुष्य ही है । मनुष्य ही अपने संकीर्ण स्वार्थों की पूर्ति के लिए भेदभाव की भिन्न-भिन्न दीवारें खड़ी करता है।कैसे रहा जाए यह मनुष्य पर निर्भर करता है .
क्रिस्ट हैल्ड और लेखक के मध्य वार्तालाप
क्रिस्ट हैल्ड ने मानव सेवा का संकल्प किया है .वह पाँच वर्षों से रोगियों की सेवा कर रही है। लेखक स्वयं को क्रिस्ट हैल्ड के स्थान पर रखकर देखता है .उसे अनुभव होता है जैसे वह स्वयं क्रिस्ट हैल्ड है, जो अपने माता-पिता से हजारों मील दूर एक अनजान देश में एकाकी है, लेखक की आँखें नम हो आती है ।
लेखक क्रिस्ट हैल्ड से पूछते है कि अपना घर छोड़ने के बाद तुम रोई थीं? वह कहती है, नहीं ,किन्तु माँ बहुत रोई थी। लेखक बतलाते है कि क्रिस्ट हैल्ड अकसर हिन्दी, अंग्रेजी, जर्मन भाषाओं के शब्द मिलाकर बोलती है।
मदर टेरेजा द्वारा पूजा-गृहों के सम्मेलन की चर्चा
लेखक मदर टेरेजा से प्रश्न करते है कि अपना देश ,अपना घर छोड़ने के बाद क्या आप कभी घर नहीं गई।
इस प्रश्न के उत्तर में मदर टेरेजा कहतीहै कि कई वर्ष पहले फ्रांस में विश्व भर के पूजा-गृहों का सम्मेलन हुआ है। भारत की दो मदर भी प्रतिनिधि बनकर उस सम्मेलन में गई थीं ,वे दोनों फ्रांस की ही थीं। उनके माता-पिता फ्रांस में ही थे। उन्हें पता था कि उनकी बेटियाँ आ रही हैं। जब दोनों माताएँ अपनी बेटियों का स्वागत करने आईं तो वे अपनी बेटियों को पहचान नहीं पाईं और एक-दूसरे से पूछने लगीं, तुम्हारी बेटी कौन-सी है? उनमें से एक न पहचाने जाने वाली बेटी वे स्वयं ही थीं। अन्त में उनका नाम पूछकर उन्हें गले से लगाया।
मदर टेरेजा वहाँ से उठकर चली गई,
मदर टेरेजा के आत्म त्याग की भावना का परिचय
मदर टेरेजा ने अपना जीवन रोगियों की सेवा करते हुए इस जगत् में मानवता के लिए समर्पित कर दिया था । वह असह्य रोगियों की सेवा किया करती थीं। वह गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिए प्रार्थना करती थीं। उन्होंने अपना प्रेम अत्यधिक दुःखी व्यक्ति के लिए समर्पित कर दिया था।
वृद्ध मदर मार्गरेट का सेवा भाव तथा जादुई व्यक्तित्व
लेखक वृद्ध मदर मार्गरेट के सेवा भाव से बहुत प्रभावित होते है । लेखक बतलाते है कि मदर मार्गरेट की चाल चुस्त और व्यवहार मस्त था। वह रोगियों से मुसकराते हुए बात करती थीं। उनको देखकर रोगी के मन का दु:ख दूर हो जाता था। इस मानव सेवा में वे ऐसी आनन्दमग्न थीं कि उसके सामने उन्हें जीवन की अन्य इच्छा तुच्छ नज़र आती थीं
परोपकार एवं मानवीयता की भावना को चरितार्थ करना
लेखक बतलाते है कि है कि राबर्ट नर्सिंग होम की मदर टेरेजा ,क्रिस्ट हैल्ड
मदर मार्गरेट जिस आत्मीयता, ममता, स्नेह, सहानुभूति की भावना से रोगियों की सेवा कर रही हैं, वह समूची मानव जाति के लिए अनुकरणीय हैं।
हम भारतीय गीता पढ़ते हैं, समझते हैं ,किन्तु हम धर्म ग्रन्थ को पढ़कर यह लेते है कि पुण्य कर्म हो गया और हम अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं, लेकिन मदर टेरेजा ,क्रिस्ट हैल्ड, मदर मार्गरेट तो उस गीता के सार को अपने व्यावहारिक जीवन में उतारती हैं। सच में ये धन्य हैं, ये मानव जाति का उज्ज्वल पक्ष हैं ,जो संकेत देती है कि मनुष्यता अभी भी जीवित है ।
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