ॐ के उच्चारण का रहस्य
अनहद नाद :
ॐ इस ध्वनि को अनाहत कहते हैं । अनाहत अर्थात जो किसी आहत या टकराहट से पैदा नहीं होती बल्कि स्वयंभू है । इसे ही नाद कहा गया है।
ओम की ध्वनि एक शाश्वत ध्वनि है जिससे ब्रह्मांड का जन्म हुआ है।
ॐ एक ध्वनि है, जो किसी के द्वारा निर्मित नहीं है।
यह वह ध्वनि है जो समस्त कण-कण में, अखिल अंतरिक्ष में विद्यमान है और मनुष्य के भीतर भी यह ध्वनि निरंतर विद्यमान रहती है ।
सूर्य सहित ब्रह्मांड के प्रत्येक गृह से यह ध्वनि बाहर निकल रही है।

2. ब्रह्मांड का जन्मदाता :

शिव पुराण के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति नाद और बिंदु के मिलन से हुई मानी गई है ।
नाद अर्थात ध्वनि और बिंदु अर्थात शुद्ध प्रकाश। यह ध्वनि ब्रह्माण्ड में सतत विद्यमान रहती है।
ब्रह्म प्रकाश स्वयं प्रकाशित है। इसे ही शुद्ध प्रकाश कहते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड और कुछ नहीं सिर्फ कंपन, ध्वनि और प्रकाश की उपस्थिति ही है।
एक दिन सबकुछ नष्ट हो जायेगा …. बस ,नाद और बिंदु ही शेष रहेगा ।
3. ओम शब्द का अर्थ :
ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है- अ, उ, म…।
इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है।
अ मतलब अकार,
उ मतलब ऊंकार
और म मतलब मकार।
‘अ’ ब्रह्मा का वाचक है जिसका उच्चारण द्वारा हृदय में उसका त्याग होता है।
‘उ’ विष्णु का वाचक हैं जिसका त्याग कंठ में होता है

तथा ‘म’ रुद्र का वाचक है
4. ओम का आध्यात्मिक अर्थ :
ओ, उ और म- उक्त तीन अक्षरों वाले शब्द की महिमा अपरम्पार है। यह नाभि, हृदय और आज्ञा चक्र को जाग्रत करता है। यह त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है और यह भू: लोक, भूव: लोक और स्वर्ग लोग का भी प्रतीक माना गया है। ओंकार ध्वनि के 100 से भी अधिक अर्थ बताये गए हैं। यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण की अवस्था का प्रतीक है।
5. मोक्ष का साधन :
ओम ही है एकमात्र ऐसा प्रणव मंत्र जो मनुष्य को अनहद या मोक्ष की ओर ले जा सकता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार मूल मंत्र या जप तो मात्र ओम ही है।
ओम के आगे या पीछे लिखे जाने वाले शब्द गोण होते हैं।
प्रणव ही महामंत्र और जप योग्य है।
इसे प्रणव साधना भी कहा जाता है। यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण, कैवल्य ज्ञान या मोक्ष की अवस्था का प्रतीक है।
जब मानव निर्विचार और शून्य में चला जाता है तब यह ध्वनि ही उसे निरंतर सुनाई देती रहती है।
6. प्रणव की महत्ता :
शिव पुराण में प्रणव के अलग-अलग शाब्दिक अर्थ और भाव बताए गए हैं- ‘प्र’ यानी प्रपंच, ‘ण’ यानी नहीं और ‘व:’ यानी तुम लोगों के लिए।
जिसका अर्थ होता है कि प्रणव मंत्र सांसारिक जीवन में प्रपंच यानी कलह और दु:ख दूर कर जीवन के अहम लक्ष्य यानी मोक्ष तक पहुंचा देता है।
यही कारण है ॐ को प्रणव नाम से जाना जाता है।
दूसरे अर्थों में प्रणव को ‘प्र’ यानी यानी प्रकृति से बने संसार रूपी सागर को पार कराने वाली ‘ण’ यानी नाव बताया गया है।
हर भक्त को शक्ति प्रदान कर जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त करने वाला होने से यह प्रणव: है।

7. स्वत: ही उत्पन्न होता है जाप :
ॐ के उच्चारण का अभ्यास करते-करते एक एक ऐसी स्थिति आ जाती है जबकि उच्चारण करने की आवश्यकता नहीं होती, सिर्फ आंखों और कानों को बंद कर इस ध्वनि सुना जा सकता है ।
प्रारंभ में वह बहुत ही सूक्ष्म सुनाई देगी फिर शनै: शनै: यह बढ़ती जाती है ।
साधकों के अनुसार यह ध्वनि प्रारंभ में झींगुर की आवाज जैसी सुनाई देतीहै , फिर धीरे-धीरे ऐसा अनुभव होता है जैसे बीन बज रही हो, फिर यह ढोल की थाप जैसी सुनाई देने लगती है , फिर यह ध्वनि शंख जैसी हो जाती और अंत में यह शुद्ध ब्रह्मांडीय ध्वनि हो जाती है ।
8. शारीरिक रोग और मानसिक शांति हेतु :
इस मंत्र के लगातार जप करने से शरीर और मन को एकाग्र करने में मदद मिलती है। ह्रदय की धड़कन और रक्तसंचार सुचारू होता है। इससे निकलने वाली ध्वनि शरीर के सभी चक्रों और हारमोन स्राव करने वाली ग्रंथियों से टकराती है। इन ग्रंथिंयों के स्राव को नियंत्रित करके बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है।इससे शारीरिक रोग के साथ ही मानसिक बीमारियां दूर होती हैं।
ॐ का उच्चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। घबराहट या अत्यधिक व्याकुलता की स्थिति में ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं । यह शरीर के विषैले तत्त्वों का नाश करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों को नियंत्रित करता है। यह हृदय और रक्त के प्रवाह को संतुलित रखता है।

9. सृष्टि विनाश की क्षमता :
ओम की ध्वनि में यह शक्ति है कि यह इस ब्रहमांड के किसी भी गृह को फोड़ने या इस संपूर्ण ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता रखती है। यह ध्वनि सूक्ष्म से भी सूक्ष्म और विराट से भी विराट होने की क्षमता रखती है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक है। बहुत-सी आकाश गंगाएँ इसी तरह फैली हुई है। इस मंत्र का प्रारंभ है अंत नहीं।
ॐ के उच्चारण की विधि
प्रातः उठकर पवित्र होकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें।
ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं।
इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपने समयानुसार कर सकते हैं।
ॐ जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं।
ॐ जप माला से भी कर सकते हैं।
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