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महायोगी गुरु गोरखनाथ yogi gorakhnaath

May 4, 2022
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yogi gorakhnaath

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गुरु गोरखनाथ

guru gorakhnaath

भरत भूमि ,जिसकी कोख से अनेकानेक ऐसे सिद्ध पुरुष उत्पन्न हुए है जिनका जीवन असाधारण और  दैविक चमत्कार से परिपूर्ण था .जिनका जन्म और निर्वाण भी किसी दिव्य और अलौकिक घटना जैसा प्रतीत होता है . दिव्य ,अलौकिक और दैविक गुणों से परिपूर्ण होने के साथ –साथ जिनका जीवन पारमार्थिक एवं लोक कल्याण के लिए कठोर साधना में व्यतीत हुआ . जिनकी  सिद्धियाँ और शक्तियों के समक्ष भक्त अभिभूत होकर उन्हें देवावतार के रूप में नत मस्तक जाते है .ऐसी विभूतियों में एक नाम अग्रणीय है  –नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक –गोरक्षक नाथजी का  ,जिन्हें सामान्य जन योगी गोरखनाथजी  के नाम से पुकारते है और इस मान्यता को स्वीकार करते है कि गोरखनाथजी का ही अवतरण थे .इसके प्रमाण में प्रसंग प्रचलित है –

गोरखनाथ yogi gorakhnaathकिसी निर्जन स्थान  पर कठोर तप कर रहे  थे। संयोग से  माता पार्वती भगवान शिव  के साथ  उसी ओर से गुजर रही थी .माता पार्वती की दृष्टि तप कर गोरखनाथजी  पर पड़ी . माता पार्वती ने भगवान शिव  से पूछा कि यह कौन है ?

भगवान शिव  ने माता पार्वती से कहा  –यह मेरा ही अवतरण है .

इस प्रचलित मान्यता के आधार पर  गोरखनाथ को शिव का अवतार भी माना  जाता है |

एक मान्यता के अनुसार गोरखनाथजी का जन्म किसी की कोख से नहीं हुआ था .इसके समबन्ध में एक कथा प्रचलित है –

एक बार मत्स्येन्द्रनाथ भिक्षाटन करते हुए एक गाँव में पहुंचे  . एक स्त्री  ने मत्स्येन्द्रनाथ को अन्न दान किया और तत्पश्चात मत्स्येन्द्रनाथ के सामने पुत्र न होने का दुःख प्रकट किया .

मत्स्येन्द्रनाथ ने उस स्त्री को पुत्र प्राप्ति के लिए  चुटकी भर भभूत देते हुए कहा कि  इस भभूत सेवन  के प्रभाव से तुम्हे पुत्र प्राप्ति होगी .ऐसा आशीष देकर मत्स्येन्द्रनाथ आगे बढ़ गए |

बारह वर्ष पश्चात् गुरु मत्स्येन्द्रनाथ  उसी गांव में आये जिस गाँव में  भिक्षाटन करते हुए उन्होंने एक स्त्री को भभूत देते हुए पुत्र प्राप्ति का आशीष दिया था . मत्स्येन्द्रनाथ उस स्त्री के द्वार पर गए और बालक के बारे में पूछा .स्त्री ने बतलाया की अविश्वास और व्यर्थ का आडम्बर  मानकर  उसने भभूत का सेवन किये बिना उसे गोबर पर फेंक दिया  था .

 गुरु मत्स्येन्द्रनाथ  उसी स्थान पर पहुंचे जहाँ उस स्त्री ने भभूत को गोबर पर फेंका था .वहाँ पहुंचकर उन्होंने एक  बालक को पुकारा .एक बारह वर्ष का बालक प्रकट हुआ . गुरु मत्स्येन्द्रनाथ  उस बालक को अपने साथ लेकर चले गए .कहा जाता है कि यही बालक आगे चल कर गुरु गोरखनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यही कारण है कि गोरखनाथ को मत्स्येन्द्रनाथ का मानस पुत्र और शिष्य कहा जाता है।

मान्यता यह भी है कि  गोरखनाथजी  वर्तमान में भी सदेह विद्यमान हैं . योग और तपबल से  yogi gorakhnaathगोरखनाथ चिरायु हो गए . चारों युग में उनके विद्यमान होने के प्रमाण  का उल्लेख धर्म ग्रन्थ , जनश्रुतियों, और लोक कथाओं में  हुआ है . त्रेता युग में भगवान श्री राम के राज्याभिषेक  में , द्वापर युग में श्री कृष्ण और रुक्मणि के विवाहोत्सव में  उपस्थित होने का उल्लेख मिलाता है .ऐसा कहा जाता है कि कलयुग  में बाप्पा रावल ने संत सेवा से प्राप्त  जिस तलवार से मुगलों को पराजित कर  चित्तोड़ राज्य की स्थापना की ,वह तलवार प्रदान करनेवाले संत गोरखनाथजी ही थे .

नाथ संप्रदाय के संस्थापक  भगवान शिव को  माना जाता है , जिसके शिष्य  आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय थे . भगवान् दत्तात्रेय के शिष्य थे मत्स्येन्द्रनाथ और मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य हुए –योगी गोरखनाथ .

नाथ संप्रदाय  मत्स्येन्द्रनाथ और गोरखनाथ से पूर्व तक  विकीर्ण स्थिति में  था . संप्रदाय  मत्स्येन्द्रनाथ और गोरखनाथ ने विकीर्ण  नाथ संप्रदाय का एकत्रीकरण कर   उसे व्यवस्थित और  विस्तृत बनाया .

नाथ साहित्य

 गोरखनाथजी  yogi gorakhnaathद्वारा रचित 40 रचनाएँ हैं . मुख्य रचनाएँ     ‘अमवस्क’, ‘अवधूत गीता’,’गोरक्षकौमुदी’, ‘गोरक्ष चिकित्सा’, ‘गोरक्षपद्धति’,’गोरक्षशतक,

इनके साहित्य में योग और शैव तंत्रो का समावेश है। गुरु गोरखनाथजी ने अपनी रचनाओं में तप,, स्वाध्याय और ईश्वरोपासना अधिक बल  दिया है .साथ ही हठ योग का भी उपदेश दिया। इन्ही किवदंतियो से ज्ञात  है कि गोरखनाथ ने भारत की  राजनितिक  सीमाओं से परे ,यतः – नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान आदि देशों तक नाथ संप्रदाय का विस्तार  कर नाथ साहित्य के माध्यम से जन सामान्य को शिक्षित-और दिक्षित्त किया।  परवर्ती संत-साहित्य पर  नाथ साहित्य का गहरा प्रभाव पड़ा .

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