1 शान्त, स्निग्ध ज्योत्स्ना उज्ज्वल! अपलक अनन्त नीरव भतल! सैकत शय्या पर दुग्ध धवल, तन्वंगी गंगा, ग्रीष्म विरल. लेटी है श्रान्त, क्लान्त. निश्चल! तापस-बाला गंगा निर्मल,…
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1 शान्त, स्निग्ध ज्योत्स्ना उज्ज्वल! अपलक अनन्त नीरव भतल! सैकत शय्या पर दुग्ध धवल, तन्वंगी गंगा, ग्रीष्म विरल. लेटी है श्रान्त, क्लान्त. निश्चल! तापस-बाला गंगा निर्मल,…