अभिनव मनुष्य1है बहुत बरसी धरित्री पर अमृत की धार,पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका संसार।भोग-लिप्सा आज भी लहरा रही उद्दाम,बह रही असहाय नर की भावना…
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अभिनव मनुष्य1है बहुत बरसी धरित्री पर अमृत की धार,पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका संसार।भोग-लिप्सा आज भी लहरा रही उद्दाम,बह रही असहाय नर की भावना…